Madhya Pradesh

मप्र में 25 से 75 पैसे किलो बिक रही प्याज, मंडी तक ले जाने का किराया भी जेब से देना पड़ रहा


भोपाल/इंदौर/खंडवा ।
देश में अपने आप को किसानों की सबसे हितैषी सरकार बताने वाली शिवराज सरकार में अन्नदाता सबसे अधिक बेहाल हैं। खासकर प्याज की फसल बोने वाले किसान इस कदर बेहाल हैं की वे 25 पैसे से 75 पैसे किलो में प्याज बेचने को मजबूर हो रहे हैं। मप्र सरकार के कृषि विभाग की वेबसाइट के अनुसार एक हेक्टेयर प्याज की खेती में लगभग 1 लाख 20 हजार रुपए खर्च होते हैं। उत्पादन प्रति हेक्टेयर 225 क्विंटल तक होता है। आज की हालत में किसान बमुश्किल 300 रुपए क्विंटल तक प्याज बेच पा रहे हैं। इसका मतलब है कि उनकी लागत मूल्य भी उन्हें वापस नहीं मिल पा रही है। साथ ही उत्पादन भी औसत से कहीं कम हो रहा है। कृषि विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में इस बार किसानों ने प्याज की खेती पर करीब 216 अरब रूपए खर्च किए हैं, लेकिन उन्हें उसकी आधी रकम भी मिलती नजर नहीं आ रही है। प्याज के उचित भाव नहीं मिलने को लेकर भारतीय किसान संघ के नेता भी सरकार से मांग कर रहे हैं कि सरकार प्याज का समर्थन मूल्य तय करें। कभी यही प्याज 40 किलो, तो कभी यही प्याज के 1 रुपए प्रति किलो का भाव नहीं मिलता हैं। आज किसान प्याज लेकर मंडी तक नहीं जा रहा है, किसान को ट्रैक्टर ट्राली का किराया भी जेब से देना पड़ रहा है। आज किसान प्याज को या तो खेत में सड़ा दे रहा है या जानवरों को खिला दे रहा है या नाले में बहा दे रहा है। इस लिए सरकार को किसानों के लिए सोचना चाहिए।

-पहले फसल खराब, अब नहीं मिल रहे दाम

कभी आम आदमी के किचन का स्वाद बिगाड़ देने वाली प्याज इन दिनों किसानों के खेत का बजट बिगाड़ रही है। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से शाजापुर, खंडवा, छिंदवाड़ा, इंदौर, रतलाम, बुरहानपुर, रायसेन के भोजपुर में ज्यादा नुकसान होने की जानकारी सामने आई है। इन्हीं जिलों में प्याज की खेती सबसे ज्यादा होती है। मप्र देश के पांच सबसे ज्यादा प्याज उत्पादक राज्यों में आता है। राज्य में प्याज का रकबा लगभग 1.8 लाख हेक्टेयर है। पिछले सालों में रकबा बढ़ा है और इस वजह से उत्पादन भी। मगर इस बेमौसम बरसात ने किसानों का हौसला तोड़ दिया है। प्याज की खेती करने वाले किसान इन दिनों काफी परेशान है क्योंकि प्याज का उचित दाम उन्हें नहीं मिल रहा है। मंडी में किसान का प्याज 25 से 75 पैसे किलो तक बिक रहा है। ट्रैक्टर ट्राली का भाड़ा भी किसानों को जेब से देना पड़ रहा है। कहीं किसानों ने तो प्याज को फ्री में बांट दिया तो कहीं किसानों ने जानवरों को खिला दिया। किसानों ने सरकार से मांग की है की प्याज का भी समर्थन मूल्य तय होना चाहिए।

– नालों में फेक रहे हैं या जानवरों को खिला रहे

प्रदेश में इन दिनों प्याज की खेती करने वाले किसान काफी दुखी और परेशान है। किसानों की लागत तो दूर की बात है, मंडी तक ले जाने का किराया तक जेब से देना पड़ रहा है। इसलिए किसान प्याज को नालों में फेक रहे हैं या जानवरों को खिला रहे हैं। कहीं किसान तो मंडी में प्याज लेकर आ रहे हैं, लेकिन भाव सुनकर शहर की सड़कों पर फ्री में बैठ कर चले जा रहे हैं। यही हाल व्यापारियों के भी है। मध्य प्रदेश के खंडवा मंडी में प्याज का व्यापार करने वाले व्यापारी यहां की प्याज को देश के अन्य प्रदेशों में भी बेचते हैं। लेकिन वहां भी भाव नहीं मिलने के कारण व्यापारियों के माथे पर चिंता की लकीरें छाई हैं। व्यापारियों का कहना है कि बेमौसम बारिश से प्याज की फसलें खराब हो गई है उच्च क्वालिटी का प्याज अब मंडी में नहीं आ रहा है इसलिए मंडी में एक रुपए से भी नीचे का भाव प्याज का पहुंच गया है।

-चुनाव में मुद्दा बन सकता है प्याज

प्याज की कीमत कई बार चुनाव की दिशा बदल देती है। देश में सबसे पहले प्याज की कीमत पर चर्चा 1998 के चुनाव में हुई थी, जब सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और प्याज के दाम 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गए थे। कांग्रेस ने महंगाई को मुद्दा बनाकर प्रचार प्रसार किया था। इसमें सुषमा स्वराज दिल्ली का चुनाव हार गई थीं और कांग्रेस सत्ता में आ गई थी। प्याज ने दूसरी बार दिल्ली की ही राजनीति में 2014 में शीला दीक्षित को आंसू निकलवा दिए थे। 2002 में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्याज की बढ़ती हुई कीमत ने बड़ा रुलाया था। इंदिरा गांधी भी प्याज की कीमतों को लेकर अपने चुनावी भाषणों में जनता को दिलासा देती नजर आई हैं। अब ऐसा लग रहा है कि इस बार प्याज के दाम मप्र के चुनाव पर सियासी खेल बना या बिगाड़ सकते हैं। इस साल के विधानसभा चुनाव में प्याज शिवराज सिंह की किस्मत तय करेगा। मप्र में कांग्रेस महंगाई को मुद्दा बना रही है और इस बार का चुनाव पूरी तरीके से महंगाई के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। इसी वजह से बाजार में आम आदमी के जरूरत का हर महंगा सामान नेताओं के भाषणों में सुनाई देगा। ऐसा लगता है की इस बार प्याज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को रुलाने के लिए तैयार है।

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