Madhya Pradesh

mp Election : भाजपा की 200 पार की राह नहीं आसान, 116 का आंकड़ा भी हो सकता है मुहाल

 किसान संगठन भाजपा सरकार से नाराज
– 80 लाख किसान शिव राज के खिलाफ
– फसल बीमा, ओलावृष्टि और गेहू खरीदी रोकने से किसानों में आक्रोश
Bhopal : मप्र की शिवराज सरकार किसान हितैषी होने का खुब दावा करती है, लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश के 100 लाख यानी 1 करोड़ किसानों में से केवल 20 लाख किसान की सरकार की मेहरबानी से मालामाल हो रहे हैं। यानी प्रदेश का 80 लाख किसान अभी भी बदहाल है। यह किसान भाजपा के मिशन 200 पार की राह में कांटा बनकर खड़ा है। अगर किसान इसी तरह अड़े रहे तो भाजपा को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना भी मुश्किल हो सकता है। गौरतलब है 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों की नाराजगी का परिणाम देख चुके हैं। 
2018 में भाजपा 109 पर ही सिमट गई थी। इसलिए इस बार मुख्यमंत्री किसानों को खुश करने के लिए जमकर खजाना लूटा रहे हैं। लेकिन इसका फायदा उन किसानों को नहीं मिल पा रहा है जिनको राहत की सबसे अधिक जरूरत है। वहीं फसल बीमा की पर्याप्त राशि नहीं मिलने, बारिश ओलावृष्ठि से फसल खराब होने से परेशान किसानों को सरकार ने गेहूं खरीद पर रोक लगाकर आक्रोशित कर दिया है। इसका असर प्रदेश की 170 सीटों पर दिखेगा।
– 170 सीटों पर किसानोंं का असर
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा 200 और कांग्रेस 150 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य बनाकर काम कर रही हैं। दोनों पार्टियों के जिम्मेदार अपनी-अपनी सरकार बनाने का दांवा कर रहे हैं। लेकिन उन्हें भी मालुम है कि मप्र में उसी की सरकार बनेगी जिसका साथ किसान देंगे। इसलिए अन्नदाता के मन की बात को परखने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने प्लान तैयार कर लिया है। 
कांग्रेस ने बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हुई फसलों के बहाने किसानों में पैठ बनाने की तैयारी कर ली है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सभी जिला अध्यक्ष जिला प्रभारियों को इस बात के निर्देश दिए हैं कि वह बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हुई फसलों का आंकलन करने के लिए किसानों के बीच जाएं। खेतों में जाकर फसलों के नुकसान का आंकलन कर अपनी रिपोर्ट पीसीसी को सौंपे।
– अभी से सुलग रही आंदोलन की आग
विधानसभा चुनावों के लिए किसान इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चना, प्याज, मसूर और दहलनी फसलों के गढ़ मप्र में ये ही सत्ता की राह दिखाते हैं। लेकिन फसल का सही मूल्य न मिलने, प्राकृतिक आपदाओं में फसल खराब होने से किसानों की आत्महत्या का मामला गरमाया हुआ है। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया है। किसानों की 33 मांगों को लेकर किसान मजदूर महासंघ ने प्रदेश में बड़ा आंदोलन करने का ऐलान किया है। 
राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष,राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय समन्वयक, संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) की कोर कमेटी के वरिष्ठ सदस्य शिव कुमार शर्मा कक्का जीÓ ने ऐलान किया है कि मांगे नहीं माने जाने पर 1 जून से 7 जून तक प्रदेश में आंदोलन होगा। पूरे प्रदेश में फल, दूध, सब्जी की सप्लाई बंद करेंगे।
– कम कीमत पर गेंहू खरीदी को लेकर नाराज
प्रदेश के किसानों का आरोप है कि मंडी में व्यापारी उनके गेहूं की बोली कम लगा रहे हैं जबकि सरकार द्वारा समर्थन मूल्य 2125 है। 31 मार्च तक मंडी में समर्थन मूल्य की खरीदी पर रोक लगी हुई है, जिसके कारण किसानों को मजबूरी में गेहूं व्यापारी को बेचना पड़ रहा है। इंदौर की लक्ष्मीबाई मंडी पर बड़ी संख्या में किसान अपना गेहूं लेकर बेचने के लिए पहुंचे, जहां पर किसानों के गेहूं की बोली व्यापारियों ने 1650 रुपए से लगाना शुरू की। जिससे किसान नाराज हुए। किसानों का कहना है समर्थन मूल्य 2125 है उससे कम में किसान अगर अपना माल बेचेगा तो उसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में सरकार द्वारा समर्थन मूल्य की खरीदी भी 31 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है। उधर व्यापारियों का कहना है गेहूं में नमी आने के कारण गेहूं के दाम उस हिसाब से लगाए जा रहे हैं। 
ओलावृष्टि, बारिश और तेज आंधी से प्रभावित फसलों का मुआवजा जल्द ही किसानों को दिया जाए। वहीं, पूर्व में लंबित राशि खातों में डाली जाए। पीडि़त किसानों से ऋण की किश्त नहीं वसूली जाए। यह तारीख बढ़ाकर 31 मई की जाए। मंडियों में गेहूं, चना, प्याज, आलू और कपास समर्थन मूल्य से नीचे बिक रहा है। इनके निर्यात पर लगी रोक तत्काल प्रभाव से हटाई जाए। किसानों से बिजली के बकाया बिल की अमानवीय ढंग से चल रही वसूली को तत्काल रोका जाए। सभी किसानों को दो लाख रुपए तक के कृषि ऋण से मुक्त किया जाए। कृषि यंत्र, उपकरण और खाद-कीटनाशक को जीएसटी से मुक्त रखा जाए। 
प्रदेश में किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर लगे सभी मुकदमे वापस लिए जाए। भू-अर्जन कानून वापस लिया जाए। वहीं, भूमि अधिग्रहण पर चार गुना मुआवजा दिया जाए। पट्टेधारी किसान जो 60 से 70 वर्ष से खेती कर हरे हैं, उन्हें हटाया जा रहा है। यदि उनमें आपस में कोई विवाद नहीं है तो उन्हें वही व्यवस्थित किया जाए। मंडी के चुनाव सीधे किसानों द्वारा करवाए जाए। डीजल पर लिया जा रहा टैक्स समाप्त हो और किसानों को 50 रुपए प्रतिलीटर के हिसाब से डीजल दिया जाए। न
कली खाद-बीज और कीटनाशक निर्माता-विक्रेताओं के विरुद्ध कार्रवाई हो। इसके लिए कानून बनाया जाए। कृषि कार्य के लिए कम से कम 12 घंटे बिजली मिले। वहीं, सभी किसानों के 50 प्रतिशत बिजली बिल माफ हो। 60 साल से अधिक आयु के किसान, मजदूर, घरेलू-कामकाजी महिलाओं, अशक्तजनों को प्रति माह 4 हजार रुपए की सम्मान निधि की राशि प्रदान की जाए। जिसमें महंगाई के अनुपात में वृद्धि हो।

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