Madhya Pradesh

रामचरित मानस जीवन जीने से लेकर मोक्ष तक का मार्ग है : साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी

भोपाल । संस्कार उत्सव समिति के तत्वावधान में विठ्ठल मार्केट दशहरा मैदान में चल रही श्रीराम कथा में कथा वाचक साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी ने भगवान की विभिन्न लीलाओं का वर्णन सुनाया। कई गूढ़ रहस्य बताए। उन्होंने कहा कि श्रीराम चरित मानस में मानव को जीवन जीने से लेकर मोक्ष तक मार्ग बताया गया है। हर व्यक्ति को इसे अपने जीवन चरित्र में अपनाना चाहिए। छठवें दिन की कथा के आरंभ में देवी ने बताया कि भगवान राम का चित्रकूट में आगमन हुआ यहां से भील राज (निषाद) भगवान को प्रणाम करके वापस लौट गए। मार्ग में शोकातुर सुमंत जी को धैर्य देकर उन्होंने अवध में भेजा। सुमंत के द्वारा राम जी का वन गमन सुनकर महाराज दशरथ ने प्राणों का त्याग कर दिया। राम विरह में प्राणों का त्याग करके अवधेश संसार से हमेशा के लिए अमर हो गए। श्री भरत जी का अयोध्या में आगमन हुआ। कैकई के द्वारा मांगे गए वरदानों के सत्य से परिचित होकर उन्होंने माता कैकेयी का सदा के लिए त्याग कर दिया, क्योंकि राम प्रेमियों के लिए राम विरोधियों का त्याग आवश्यक है। जो भगवत कर्मों के सहयोगी न बनें, ऐसे व्यक्ति का त्याग भक्तजनों द्वारा किया जाता है। कैकेयी का त्याग करके भरत जी माता कौशल्या कौशल्या के भवन में आए माता कौशल्या के भवन में आए। माता कौशल्या ने भरत को पूर्ण वात्सल्य प्रदान करते हुए राम वन गमन व दशरथ मरण की पूरी घटना सुनाई। मुख्यमंत्री की पत्नी एवं अखिल भारतीय किरार क्षत्रिय महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती साधना सिंह चौहान, बीडीए उपाध्यक्ष सुनील पांडे, भाजपा कार्यालय मंत्री डॉ राघवेंद्र शर्मा, राहुल कोठारी, पूर्व आईएएस राकेश सिंह, संजय राणा, एडिशनल एसपी राजेश भदौरिया, सीएसपी वीरेंद्र मिश्रा, हबीबगंज थाना प्रभारी मनीष भदौरिया, संस्कार उत्सव समिति के अध्यक्ष शांतनु शर्मा, पं. राकेश चतुर्वेदी, राकेश शर्मा, प्रेम श्रोती, बाल आयोग के सदस्य, बृजेश चौहान रंजीत सिंह चौहान सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

चित्रकूट में भरत की राम प्रेममयी दशा देखकर पत्थर भी पिघलने लगे

श्री भरत जी राम के बिना नहीं रहना चाहते थे उन्होंने चित्रकूट यात्रा के लिए अयोध्या वासियों को तैयार किया। राजतिलक की सामग्री को साथ लेकर गुरुदेव के अनुमति से श्री भरत सभी को लेकर भगवान की खोज में चल पड़े। संकेत यह है कि जन्म जन्मांतर में भटके हुए जीव को तब तक परम शांति नहीं मिल सकती जब तक कि वह भगवान की खोज न कर ले। मार्ग की अनेक बाधाओं को पार करते हुए श्री भरत जी चित्रकूट तक पहुंचे। सच्चे साधक के मार्ग में अनेक बाधाएं आती हैं किंतु राम प्रेम के बल पर वह संपूर्ण बाधाओं को पार कर लेता है। भाई-भाई के प्रेम को दर्शन कराने के लिए ही श्री राम और भरत जी के मिलन का प्रसंग आया। चित्रकूट में भरत जी की राम प्रेममयी दशा को देखकर वहां के पत्थर भी पिघलने लगे। भगवान ने भरत जी के प्रेम को स्वीकार करते हुए चित्रकूट की सभा में उन्हें ही निर्णय करने के लिए कहा तो भरत जी ने भगवान को वापस अयोध्या लौटने के लिए प्रार्थना की और स्वयं पिता के वचन को मानकर वनवासी जीवन बिताने का संकल्प लिया किंतु भगवान को यह स्वीकार नहीं था। 

यदि भाई, भाई की विपत्ति बांटने लगे तो सारी समस्या खत्म

श्रीराम और भरत दोनों भाई एक दूसरे के लिए संपत्ति और सुखों का त्याग करने के लिए आतुर थे और विपत्ति को अपनाना चाहते थे, यही भ्रातृ प्रेम है। आज वर्तमान में भाई-भाई की संपत्ति को बांटता है, विपत्ति को नहीं। यदि भाई-भाई की विपत्ति को बांटने लगे तो संसार भर के परिवारों की समस्याओं का समाधान हो जाए। भाई-भाई का प्रेम आज न जाने कहां चला गया। श्रीराम-भरत के प्रेम से प्रत्येक भाई को भाई से प्रेम का संदेश लेना चाहिए। श्री भरत जी ने भगवान की चरण पादुकाओं को सिंहासनारूढ़ किया और 14 वर्ष तक उनकी सेवा की। यह भ्रातृ प्रेम की पराकाष्ठा है।

भरत का चरित्र राम से बड़ा प्रतीत होता है

श्रीभरत ने भाई का भाग कभी स्वीकार नहीं किया बल्कि अपना भाग भी भगवान को देकर सदैव दास बनकर उनकी सेवा करते रहे। भगवान श्रीराम वन में रहकर वनवासी, तपस्वी जीवन व्यतीत करते हैं किंतु भरत तो नंदीग्राम में रहकर भी संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए भी पूरी अयोध्या वासियों का ध्यान भी रखते हैं। सब प्रकार से भरत का चरित्र राम जी से बड़ा प्रतीत होता है, भरत जी के नाम का अर्थ ही है भ अर्थात भक्ति, र अर्थात रति, त अर्थात त्याग। भगवान की भक्ति, रति और त्याग का अद्भुत उदाहरण है श्री भरत जी।

संतों के आश्रम भी गए, लीलाएं भी दिखाई

जब इंद्र पुत्र जयंत ने कुदृष्टि एवं कुविचारों के कारण श्री सीता जी के चरण में चोंच का प्रहार किया तो भगवान ने उस पर तिनके का बाण छोड़ दिया। जिस कारण वह त्रैलोक्य में भटका, किंतु किसी ने भी उसका सहयोग नहीं किया। यहां सूत्र है कि जो भगवान का अपराध करता है उसे तो भगवान क्षमा कर देते हैं किंतु जो उनके भक्तों का अथवा भक्ति देवी का ही अपराध करता है वह भगवान के द्वारा दंड पाता है। इसलिए जयंत को भी भगवान ने दंडित किया। आगे की लीलाओं को संपूर्ण करने के लिए भगवान संतो के आश्रमों में दर्शन देते हुए पंचवटी पर पहुंचे। यहां सूर्पनखा का विरूपी करण लक्ष्मण के द्वारा किया गया। शूर्पणखा दुर्भावना की प्रतीक है और लक्ष्मण जी वैराग्य का। वैराग्य के द्वारा ही दुर्भावनाओं को मिटाया जा सकता है। रावण के द्वारा पंचवटी से श्री जानकी जी का हरण एवं जटायु जी के द्वारा उनकी रक्षा करते हुए मरणासन्न स्थिति को प्राप्त होने की घटना से संकेत मिलता है कि विधर्मियों से अपने धर्म, संस्कृति, संस्कारों एवं नारी के सम्मान की रक्षा करने में यदि हमारे प्राण भी चले जाएं तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। अंत में भगवान के द्वारा जटायु जी को पूर्ण प्रेम एवं आदर प्राप्त हुआ, जो दर्शाता है कि जो धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं वही भगवान के विशेष प्रेमी होते हैं।

शबरी को मिले भगवान

शबरी जो नित प्रतिदिन भगवान के आगमन का इंतजार करती थी, भगवान के आगमन से उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। भगवान ने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश करके जीव मात्र को संदेश दिया कि भगवान की भक्ति में सभी प्राणियों का अधिकार है। किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय और कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भगवान की भक्ति कर सकता है।

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