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रालोद विधायकों की चिंता: 2027 विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन का असर

नई दिल्ली । रालोद (राष्ट्रीय लोक दल) के विधायकों के बीच चिंता का माहौल है। भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद पार्टी के मुस्लिम वोटबैंक में भारी कमी आई है। इसके साथ ही, जाट समुदाय के कई सदस्य भी पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत की संभावना कम होती दिख रही है।

मौजूदा स्थिति में, बिना मुस्लिम वोटों के किसी भी विधायक के लिए पुन: चुनाव जीतना मुश्किल है। यह भी संभव है कि उनकी सीटें भाजपा के खाते में चली जाएं। जहां एक तरफ जयंत चौधरी केंद्र में मंत्री पद संभाल रहे हैं, वहीं रालोद के विधायकों का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ है।

विधायकों के समर्थकों में भी निराशा फैली हुई है क्योंकि उनके कोई काम नहीं हो रहे हैं। इसके अलावा, कुछ विधायकों में इस बात की नाराजगी भी है कि उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। जयंत ने मंत्री पद के लिए एक दलित विधायक को चुना, जो सामान्यतः रालोद को वोट नहीं देते।

रालोद के विधायक अभी चुप हैं, लेकिन समय आने पर इनमें से कई भाजपा का दामन थाम सकते हैं।

2027 विधानसभा चुनाव और रालोद की चुनौतियां

रालोद के विधायकों की चिंताओं का मुख्य कारण मुस्लिम और जाट वोटबैंक का पार्टी से अलग होना है। इसके साथ ही, जयंत चौधरी का केंद्र में मंत्री बनना भी विधायकों की निराशा का एक कारण है। विधायकों का मानना है कि मौजूदा परिस्थिति में उनकी जीत की संभावना बेहद कम है।

सूत्रों के अनुसार, यदि समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए तो रालोद को 2027 के चुनाव में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

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