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भोपाल में अखिल भारतीय कला मंदिर संस्था की मासिक गोष्ठी संपन्न, ‘बाल तरंग’ का विमोचन

भोपाल, । अखिल भारतीय कला मंदिर संस्था ने अपनी मासिक गोष्ठी का आयोजन शनिवार को सफलतापूर्वक संपन्न किया। इस अवसर पर डॉ. गौरी शंकर शर्मा गौरीश द्वारा रचित बाल कविता संग्रह ‘बाल तरंग’ का विमोचन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर शर्मा गौरीश ने की, जबकि मुख्य अतिथि डॉ. प्रकाश बरतूनिया, कुलाधिपति, भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मोहम्मद आजम मंच पर उपस्थित थे। संस्था के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री हरि वल्लभ शर्मा ‘हरि’ और श्री विनोद जैन भी मंचस्थ थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुआ, जिसे विनोद जैन ने प्रस्तुत किया। अतिथियों के स्वागत के बाद ‘बाल तरंग’ का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। इस संग्रह में 35 बाल कविताएँ शामिल हैं, जो विभिन्न बालसुलभ विषयों को समेटे हुए हैं। डॉ. गौरीश ने अपनी रचनाओं के बारे में जानकारी दी, और श्री शिवकुमार दीवान ने पुस्तक समीक्षा प्रस्तुत की।

मुख्य अतिथि श्री बरतूनिया ने कविता लेखन की चुनौतीपूर्ण प्रकृति पर प्रकाश डाला और कार्यक्रम में प्रस्तुत विविध रचनाओं की प्रशंसा की। विशिष्ट अतिथि डॉ. मोहम्मद आजम ने अपने शायराना अंदाज में कुछ शेर और ग़ज़लें पेश कीं। भोपाल और आसपास से आए लगभग 30 से अधिक साहित्यकारों ने इस काव्य गोष्ठी में विभिन्न विषयों और विधाओं पर अपनी रचनाओं का पाठ किया।

कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
1. हरिवल्लभ शर्मा ‘हरि’ की ग़ज़ल: “जो चला नहीं, है खड़ा वहीं, उसे हादसों का पता नहीं। उसे मंजिलें क्या नसीब हों, जिसे रास्तों का पता नहीं।”
2. श्री राजेन्द्र शर्मा ‘अक्षर’ की कविता: “ये घने आषाढ़ के बादल, आज कर देंगे हमें पागल।”
3. जया केतकी की कविता: “कितनी भी अनमनी हो बरसाती शाम।”
4. अवनींद्र अंशुमान की कविता: “जिनके पास नहीं हों आंसू मेरी आंखो से ले जाओ!!”
5. शरद पटेरिया की कविता: “बरखा की अटखेली बादल, हवा उड़ा ले जाती।”
6. मनीष बादल की कविता: “तन को दस-दस रोग दे, मन में करती शोर। ‘बादल’ कहता है तभी, चिंता आदमखोर।”
7. डॉ. गौरीशंकर शर्मा ‘गौरीश’ की कविता: “तन की गरमी बढ़ गई, मन फिर भी है शांत। दोष रथी की ताप से रहता सदा अशांत।”
8. बिहारी लाल सोनी ‘अनुज’ की कविता: “वर्षा का मौसम आया, हरियाली की बाहर लाया।”
9. डॉ. विमल कुमार शर्मा की कविता: “ज़िन्दगी भी क्या है, इक झरना है, इक तूफ़ान है। इक तरफ़ हैं महफ़िलें तो इक तरफ़ शमशान है।”
10. अशोक व्यास की कविता: “तन भादों मन सावन हो गया।”
11. सुषमा श्रीवास्तव ‘सजल’ की कविता: “दूषित रही धरती अम्बर, दूषित ताल-तलैया। विकास की अंधी दौड़ में, सब दौड़ रहे हैं भैया।”
12. सरोज लता सोनी की कविता: “अब जाग युवा शक्ति अपने देश को संभाल, पर्यावरण नहीं बचा तो होंगे सब बेहाल।”
13. सुरेश पटवा की कविता: “टिमटीमाता दिया तूफान के हवाले नहीं करते।”
14. हरि ओम श्रीवास्तव की कविता: “मानसून आ ही गया।”
15. कैलाश मेश्रम की रचना: “तेरी खुशबू।”

कार्यक्रम का सफल संचालन जया शर्मा केतकी ने किया, और अंत में आभार प्रदर्शन हरिवल्लभ शर्मा ‘हरि’ द्वारा किया गया।

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