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मध्यप्रदेश में न्यूनतम मजदूरी में कमी से श्रमिकों में आक्रोश

भोपाल। मध्यप्रदेश में न्यूनतम मजदूरी दरों में अचानक कमी करने के निर्णय ने प्रदेश के श्रमिकों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। राज्य की नीति के निदेशक तत्वों के तहत, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार, राज्य सरकारें अपने प्रदेशों में नियोजन वार न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की शक्ति रखती हैं।

पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरें

मध्यप्रदेश में अक्टूबर 2014 में लागू की गईं पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरों का पुनः पुनरीक्षण पांच वर्ष के भीतर अक्टूबर 2019 तक किया जाना था, लेकिन यह बहु प्रतीक्षित पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरें दस वर्ष बाद 1 अप्रैल 2024 से राज्य सरकार द्वारा लागू की गईं:

| श्रेणी         | मासिक  | दैनिक  |
|—————-|——–|——–|
| अकुशल         | ₹11800 | ₹454   |
| अर्धकुशल      | ₹12796 | ₹492   |
| कुशल          | ₹14519 | ₹558   |
| उच्च कुशल     | ₹16144 | ₹621   |

न्यायालय का स्थगन आदेश

पीथमपुर औद्योगिक संगठन और म.प्र. टेक्स्टाइल मिल्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं के संबंध में उच्च न्यायालय खण्डपीठ इंदौर ने 8 मई 2024 को स्थगन आदेश दिया। इसके पालन में श्रमायुक्त ने आदेश जारी कर पुराने दरों पर मजदूरी भुगतान के निर्देश दिए:

| श्रेणी         | मासिक  | दैनिक  |
|—————-|——–|——–|
| अकुशल         | ₹10175 | ₹391   |
| अर्धकुशल      | ₹11032 | ₹424   |
| कुशल          | ₹12410 | ₹477   |
| उच्च कुशल     | ₹13710 | ₹527   |

श्रमिकों में आक्रोश

न्यूनतम मजदूरी दरों में इस कमी के बाद, प्रदेश के लाखों श्रमिकों को अप्रैल 2024 की बढ़ी हुई दरों से भुगतान मिला, लेकिन मई 2024 का भुगतान कम होने से वे आक्रोशित हो गए। पीथमपुर, मालनपुर, रतलाम, खरगौन, मंडीदीप और अन्य स्थानों पर श्रमिक आंदोलन पर उतर आए। मालनपुर में श्रमिकों ने चक्का जाम भी किया, जिससे आवागमन बाधित हुआ और आमजन परेशान हुए। सरकारी दफ्तरों में संविदा कर्मियों में भी उथल-पुथल जारी है।

न्यूनतम मजदूरी का पुनरीक्षण

याचिकाकर्ताओं ने याचिका में प्रदेश में क्षेत्र वार न्यूनतम मजदूरी पुनरीक्षित कर निर्धारित नहीं करने का मुद्दा उठाया है, जबकि यह विषय न्यूनतम मजदूरी सलाहकार परिषद के विचार हेतु लाया ही नहीं गया था। मध्यप्रदेश, पिछड़ा और आदिवासी बाहुल्य राज्य होने के कारण, पूरे राज्य के श्रमिकों के लिए एक समान न्यूनतम मजदूरी दरें लागू करने का निर्णय लिया गया था।

न्यायिक प्रक्रिया की आवश्यकताएँ

श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान राज्य का नीतिगत विषय है। उच्च न्यायालय जबलपुर के समक्ष समग्र रूप में सुनवाई हेतु और आवश्यक होने पर सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण ले जाने की श्रम विभाग द्वारा प्रदेश के श्रमिकों और नियोजकों के हित में तत्पर और सार्थक कार्यवाही की जानी नितांत आवश्यक है।

मध्यप्रदेश में न्यूनतम मजदूरी दरों में की गई कमी ने प्रदेश के श्रमिकों के समक्ष गंभीर आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है। राज्य सरकार और न्यायालय को इस मुद्दे का त्वरित समाधान करना चाहिए ताकि श्रमिकों का जीवन यापन सुचारू रूप से चल सके।

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