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घाटी में पहली बार ऐसे हजारों लोगों को मतदान करने का मौका मिलेगा, जो अब तक चुनाव में सिर्फ मूकदर्शक हुआ करते थे

 श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव इस बार कई मायनों में अलग हैं। लद्दाख अब अलग केंद्र शासित प्रदेश है, आर्टिकल 370 और 35ए अब इतिहास का हिस्सा हैं और जम्मू-कश्मीर भी फिलहाल एक पूर्ण राज्य नहीं है। यही नहीं इनके अलावा एक अहम बात यह है कि पहली बार ऐसे हजारों लोगों को मतदान करने का मौका मिलेगा, जो अब तक जम्मू-कश्मीर के चुनाव में सिर्फ मूकदर्शक हुआ करते थे। ये लोग यहां 7 दशकों से बसे तो हैं, लेकिन अब तक वह किसी चुनाव का हिस्सा नहीं होते थे। ये वे लोग हैं, जो 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर बसे थे।

इनमें से ज्यादातर लोग जम्मू, कठुआ, राजौरी जैसे जम्मू-कश्मीर के जिलों में जाकर बसे थे। 1947 में आए इन लोगों को अब तक नागरिकता ही हीं मिल पाई थी और 5764 परिवारों को कैंपों में रहना पड़ता था। सरकारी, निजी नौकरी या फिर कोई भी संगठित रोजगार वे नहीं कर सकते थे। चुनाव में हिस्सा लेने का उन्हें अधिकार नहीं था। इसलिए किसी भी तरह का दबाव बनाने की स्थिति में भी वे नहीं थे। आर्टिकल 370 हटा तो इन लोगों के लिए उम्मीद की किरण जगी। उन्हें नागरिकता मिली, जमीन खरीदने, नौकरी का अधिकार मिला और वे लोकतंत्र का हिस्सा बने।

आर्टिकल 370 हटने के बाद पहली बार राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और इन परिवारों के हजारों लोग इस बार मतदान करेंगे। इन लोगों को पश्चिम पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी कहा जाता था। इनके साथ विडंबना यह रही कि पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर से पलायन करके आए लोगों को नागरिकता मिल गई क्योंकि उन्हें राज्य का ही माना गया। किंतु पाकिस्तान से आए लोगों को जम्मू-कश्मीर में नागरिकता नहीं मिल सकी। इसका कारण यह था कि इन्हें अधिकार मिलने में आर्टिकल 370 की बाधा खड़ी थी। अब वह दूर हुई तो ये लोग भी मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।

इन लोगों को नागरिकता न मिलने का मुद्दा भाजपा की ओर से अकसर उठाया जाता था। वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी कहलाने वाले इन लोगों में से ज्यादातर दलित समुदाय के हैं। इसलिए उन्हें पूरे देश की तरह आरक्षण न मिलना भी एक मुद्दा था। अब इनके लिए वोटिंग से लेकर रिजर्वेशन तक की राह खुल गई है। अब तक अपनी पीड़ा को ये लोग खुद को आजाद देश के गुलाम लोग कहकर जाहिर करते थे।

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