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भारत के वायु प्रदूषण में 2021-22 के बीच कमी आई ,51.3 µg/m³ वायु प्रदूषण था, जो 2022 में 41.4 µg/m³ …..

नई दिल्ली

शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (EPIC) के वायु गुणवत्ता कोष की एक स्टडी से पता चला है कि भारत के वायु प्रदूषण में 2021-22 के बीच कमी आई है. भारत में 2021 के दौरान 51.3 µg/m³ वायु प्रदूषण था, जो 2022 में 41.4 µg/m³ हो गया. यह एक महत्वपूर्ण गिरावट है. 42.6 फीसदी भारतीय नागरिक ऐसे इलाकों में रहते हैं, जो 40 µg/m³ के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक से भी ज्यादा हैं.

7 साल बढ़ सकती है दिल्ली वालों की उम्र

प्रदूषण में होने वाली कमी से भारत में एक व्यक्ति की संभावित उम्र में एक साल की बढ़ोतरी होगी. अगर प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक हो जाता है, तो दिल्ली में रहने वाले लोगों की औसत उम्र में 7.8 साल की बढ़ोतरी हो सकती है. वहीं, उत्तर 24 परगना के नागरिकों की औसम उम्र में 3.6 साल की बढ़ोतरी हो सकती है.

तंबाकू से ज्यादा खतरनाक है वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण का असर लोगों पर तंबाकू सेवन, कुपोषण और गंदे पानी से होने वाले नुकसान से ज्यादा हो रहा है. प्रदूषण की वजह से औसत उम्र में ज्यादा कमी हो रही है. मौजूदा वक्त में वायु प्रदूषण औसत भारतीय के जीवन को 3.6 साल कम कर रहा है. वहीं, बाल और मातृ कुपोषण से उम्र में 1.6 साल की कमी होती है. तंबाकू 1.5 साल और प्रदूषित जल 8.4 महीने की कमी करता है.

उत्तरी मैदानी इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित

उत्तरी मैदानी इलाके, जहां 540.7 मिलियन लोग रहते हैं, सबसे ज्यादा पीड़ित हैं, जहां WHO के मानकों की तुलना में औसत उम्र में 5.4 साल की कमी आई है. भौगोलिक कमजोरियों के बावजूद, पुरुलिया, बांकुरा और धनबाद जैसे जिलों में प्रदूषण में 20 µg/m³ से ज्यादा की कमी के साथ अहम सुधार हुआ है.

नीतिगत सुधार हो सकते हैं बेहतर बदलाव

अगर प्रदूषण में यह कमी होती रहती है, तो औसत भारतीय पिछले दशक के प्रदूषण स्तर की तुलना में नौ महीने ज्यादा जिंदा रह सकता है.

क्या दिख रहे हैं ‘क्लीन एयर प्रोग्राम’ के नतीजे?

2019 में शुरू किए गए भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme-NCAP) का टारगेट 2026 तक 2017 के स्तर से प्रदूषण को 40 फीसदी तक कम करना है. 2022 तक, नामित “Non-Attainment” शहरों में प्रदूषण 18.8 फीसदी कम हो गया, जिससे 446.7 मिलियन लोगों की औसत जिंदगी में 10.8 महीने की बढ़ोतरी हुई है. “Non-Attainment” ऐसा इलाका होता है, जो एक या ज्यादा मानदंड प्रदूषकों के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) से अधिक है. भविष्य के टारगेट, अगर पूरे देश में पूरे किए जाते हैं, तो लोगों की जिंदगी में औसतन 7.9 महीने की बढ़ोतरी हो सकती है.

हालांकि, अनुकूल मौसमी परिस्थितियों की वजह से प्रगति के ये शुरुआती संकेत एक उम्मीद की तरह देखे जा रहे हैं. लेकिन प्रदूषण नियंत्रण में लगातार कोशिश और दिशा-निर्देशों का पालन भारत की जनता के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए जरूरी है.

भारत में डायबिटीज, कैंसर और ह्दयाघात से होने वाली मौत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की रिपोर्ट में सामने आया कि 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कुल मौतों में से 50 प्रतिशत गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं। इन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना और देश के पूर्वोत्तर भागों के अधिकांश राज्य शामिल हैं।

रिपोर्ट में जिस तरह के आंकड़ों का उल्लेख किया गया है, उससे वाकई कुछ चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को ही लें। 100 में से 63 से थोड़ा अधिक स्कोर के साथ, भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने की अपनी तैयारियों के मामले में 166 देशों में 112 वें स्थान पर है।

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट के रिचर्ड महापात्रा कहते हैं, “सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रति व्यक्ति कम स्वास्थ्य व्यय, गैर-संचारी रोगों की उच्च घटनाओं, अक्षय ऊर्जा उत्पादन में गिरावट, अपर्याप्त फसल बीमा कवरेज और बिगड़ती मिट्टी की सेहत से जूझ रहे हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि नौ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि उनके पीएम 2.5 के स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुशंसित मानकों तक कम करने से उनके निवासियों का औसत जीवनकाल पांच साल और तीन महीने बढ़ सकता है। जीवन प्रत्याशा में उच्च संभावित वृद्धि का संकेत देने वाले राज्यों में दिल्ली (11 वर्ष और 10 महीने), उत्तर प्रदेश (8 वर्ष और 10 महीने), हरियाणा (8 वर्ष और 4 महीने) और बिहार (7 वर्ष और 11 महीने) शामिल हैं।

डायबिटीज तेजी से पैर पसार रही

द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार मौजूदा समय में करीब 52.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। जो पुरुषों, महिलाओं और हर उम्र के बच्चों को प्रभावित कर रहा है। वहीं अंदेशा है कि अगले 27 वर्षों में मधुमेह के साथ जिंदगी जीने को मजबूर लोगों का यह आंकड़ा बढ़कर 130 करोड़ पर पहुंच जाएगा। रिसर्च के मुताबिक इसमें से ज्यादातर लोग टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित होंगें। यह एक ऐसी स्थिति है जब शरीर समय के साथ पर्याप्त इन्सुलिन के निर्माण की क्षमता खो देता है।

लखनऊ के रेजेंसी सुपरस्पेशियलिटी हास्पिटल के डॉ यश जावेरी कहते हैं कि शरीर में इंसुलिन की कमी से डायबिटीज होता है। यह आनुवंशिक, उम्र बढ़ने पर और मोटापे के कारण होता है। भारत डायबिटीज की विश्व राजधानी है। कोरोना के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में डायबिटीज बढ़ा है। डायबिटीज में परहेज रखना पड़ता है। परहेज न रखने के परिणाम बुरे होते हैं। डायबिटीज का समय से इलाज जरूरी है। इसलिए हेल्थ चेकअप बेहद जरूरी है। समय-समय पर जांच जरूरी है। एक बार जब आपको डायबिटीज हो जाए तो आपको उसके दुष्परिणामों की जानकारी जरूरी है। जानकारी के साथ ही सतर्क भी रहना है कि कोई कॉम्प्लिकेशन तो नहीं हो रहा है। ऐसा होते ही डॉक्टर से संपर्क करें। आपको डॉक्टर की सलाह का पालन करना है और सेल्फ मॉनिटरिंग भी जरूरी है। यानी अपने ग्लूकोज और शुगर की जांच ग्लूकोमीटर से करते हैं। और शरीर स्किन की जांच करते रहते हैं। डायबिटीज शरीर के कई अंगों पर प्रभाव पड़ता है और किडनी, लीवर की खतरा बढ़ता है। वहीं दूसरी बीमारियों का प्रभाव भी बढ़ जाता है। इसलिए सेहतमंद जीवनशैली जरूरी है। जिसमें आहार, वेट मैनेजमेंट और व्यायाम जरूरी है। वहीं अगर आपको प्री डायबिटीज है तो आपको अपनी लाइफस्टाइल बदल लेनी चाहिए।

 

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