अवैध संबंध में महिला अधिकारी बरी, पुरुष दोषी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट ने नहीं माना, फिर लगी फटकार
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने उसके आदेश की अनदेखी करने को लेकर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब उसने एक बार आदेश दे दिया तो फिर उसी के मुताबिक सबकुछ होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मामला एक एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर केस से जुड़ा है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दो न्यायिक अधिकारियों को 2009 में उनके खिलाफ कथित विवाहेत्तर संबंध (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर) के आरोपों पर सेवा से बर्खास्त कर दिया था। ये आरोप पुरुष अधिकारी की पत्नी द्वारा लगाए गए थे। हालांकि, उच्च न्यायालय ने महिला न्यायिक अधिकारी को आरोपों से बरी कर पुनः सेवा में बहाल कर दिया, जबकि पुरुष अधिकारी की याचिका खारिज कर दी गई थी।
दरअसल महिला और पुरुष दोनों अधिकारियों ने अपनी सेवाओं की बर्खास्तगी को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। 25 अक्टूबर 2018 को, उच्च न्यायालय ने पुरुष अधिकारी की याचिका खारिज कर दी, जबकि एक दिन बाद, उसी पीठ ने महिला अधिकारी को बहाल करने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए विवाहेत्तर संबंधों के आरोप का कोई ठोस सबूत नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने महिला अधिकारी की पुनः नियुक्ति के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी। इस निर्णय के बाद महिला अधिकारी को सेवा में फिर से बहाल कर दिया गया। इसके बाद, पुरुष अधिकारी ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका तर्क था कि यदि उनके और महिला अधिकारी के बीच कथित संबंधों का कोई प्रमाण नहीं है, तो उन्हें भी पुनः सेवा में बहाल किया जाना चाहिए। 20 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के 25 अक्टूबर 2018 के आदेश को रद्द कर दिया और पंजाब सरकार के 17 दिसंबर 2009 के बर्खास्तगी आदेश को भी खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ से इस मामले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, 3 अगस्त 2023 को उच्च न्यायालय ने अपने 2009 के निर्णय को फिर से दोहराया और पंजाब सरकार ने 2 अप्रैल 2024 को नए सिरे से पुरुष अधिकारी की सेवाओं को समाप्त करने का आदेश जारी किया। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि जब एक बार बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया गया और उच्च न्यायालय द्वारा उस बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने वाले फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया, तो इसका स्वाभाविक परिणाम यह होना चाहिए कि कर्मचारी को सेवा में वापस लिया जाए और फिर आगे की कार्यवाही निर्देशानुसार की जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जस्टिस नाथ ने कहा, “हमें उच्च न्यायालय और राज्य की इस हरकत में कोई औचित्य नहीं दिखता कि उन्होंने 20 अप्रैल 2022 के आदेश के बाद अपीलकर्ता (पुरुष न्यायिक अधिकारी) को सेवा में वापस नहीं लिया।” कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी स्थिति में, अपीलकर्ता को (20 अप्रैल 2022 से लेकर 2 अप्रैल 2024, जब नया बर्खास्तगी आदेश जारी किया गया) तक के वेतन का पूरा हक है। इस अवधि के लिए उसे सभी लाभों के साथ पूर्ण वेतन दिया जाएगा।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि 18 दिसंबर 2009, जब उसकी सेवाएं समाप्त की गई थीं, तब से लेकर 19 अप्रैल 2022 तक, जब उसकी अपील सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत की गई, उस अवधि के लिए राज्य सरकार 50% बकाया वेतन का भुगतान करे। इस अवधि के लिए भी उसे सेवा में निरंतर मानते हुए बकाया वेतन का भुगतान किया जाएगा।