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अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ने किया होली मिलन व कवि गोष्ठी का आयोजन

गुना।अखिल भारतीय साहित्य परिषद ,शाखा गुना ने होली मिलन व कवि गोष्ठी का आयोजन रंगपंचमी को किया। यह आयोजन रेलवे भवन गुना में भारतीय परम्परा अनुरूप बड़े हर्षोल्लास से संपन्न हुआ। साहित्य परिषद् के जिला महामंत्री व होली मिलन के संयोजक ऋषिकेश भार्गव ने बताया कि देर तक चली इस कवि गोष्ठी में परिषद् के साहित्यकारों के अलावा अन्य संस्थाओं के साहित्यकारों ने होली गीत, जोगीरा व् समरसता की रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| 

वाक् देवी माँ सरस्वती और स्वामी विवेकानंद जी के समक्ष दीप प्रज्वलन व् माल्यार्पण के साथ गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। सरस्वती वंदना डॉ.रमा सिंह द्वारा प्रस्तुत की गई| इसके पश्चात सतरंगी गुलाल एक दूसरे को लगाकर होली का त्यौहार मनाया| वरिष्ठ साहित्यकार व चेतना साहित्य कला परिषद् के संरक्षक विष्णु साथी की अध्यक्षता व दिनेश बिरथरे अध्यक्ष हिंदी साहित्य भारती (मध्य भारत प्रान्त), वरिष्ठ साहित्यकार प्रेम सिंह प्रेम एवं डॉ.रमा सिंह प्रांतीय कार्यकारिणी अ.भा.सा.प. (मध्य भारत प्रान्त) के विशिष्ट आतिथ्य में डॉ.अशोक गोयल ने कहा कि लगे है रूप तुम्हारा, गुलाल होली में। तुम्हारी शोखियाँ करती कमाल होली में।। डॉ.रमा सिंह ने कहा
रंग बिखरें स्नेह के , संवेदना के;
नव उमंग – आनंद समरस चेतना के;
इंद्रधनुषी भव्य शुचि शोभा सजा लें!
हम तमस की होलिका आओ जला दें! 
डॉ.लक्ष्मी नारायण बुनकर ने यूं कहा कि कितना भोला भला चेहरा, देखो कितना लाल हो गया। बुरी तरह रंग डाला उनको, कैसा आज कमाल हो गया।।, बाबू खान निडर ने अपनी बात इंसाफ शर्मिंदा होकर अब ख़ुदकुशी करने लगे, फैसले जिंदगी और मौत के अब चोरों के हाथों होने लगे।।, श्रीमती संतोष ब्रह्म्भट्ट में भी रंगना चाहती हूं माँ होली के रंग में। मुझको भी जाने दे मां सखियों के संग में।। सूबेदार धर्मवीर भारतीय ने चाय की महिमा बताते हुए कहा कि चाय नहीं अमृत का प्याला, पीने वाला बड़ा निराला, न कोई विष न कोई हाला, चाय नहीं अमृत का प्याला।। राजेश जैन ने कहा कि जिंदगी का बोझ यारो अब सह जाता नहीं। साथ में तूफां के कस्ती से बहा जाता नहीं।। महेश जैन ने मानव को मानव बताते हुए कहा कि मैं पूजा पात्र हूँ, कोई जाम नहीं। में एक मानव हूँ, कोई राम नहीं।।, हरीश सोनी ने होली गीत से कहा कि ईर्ष्या द्वेष जला गई है होली की आग। सबको अपने रंग में रंगने आई फाग।।, उमाशंकर भार्गव ने पानी का महत्व बताते हुए कहा कि पानी तो अनमोल है इसे व्यर्थ न गवाएं। गुलाल अबीर लगाकर सूखी होली मनाएं।।, सुरेन्द्र शर्मा ने फागुन की बात करते हुए कहा कि फागुन में रंग चढ़े, रंग अंग-अंग चढ़े, अंग-अंग चढ़े रंग वही मुझे चाहिए।। अभिनन्दन मडवरिया, सत्येंद्र सिंह सिसोदिया आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया| 
साथ मंचासीन वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु साथी ने भी अपनी रचनाओं से होली के रंगों को बिखेरा, प्रेम सिंह प्रेम ने जोगीरा के साथ कहा कि कैसे कसमें कैसे वादे फागुन में, लगते नही हैं नेक इरादे फागुन में।। दिनेश बिरथरे ने मजदूर के मन की बात रखते हुए कहा कि खुह पसीना एक करूँ, दो जून की रोटी खाता हूं, शहरों का निर्माण करूँ, फिर देहाती कहलाता हूँ। चूना पत्थर ईंट लगाकर ताजमहल बनवाये हैं, फिर भी इस निर्दय मानव से मैनें हाथ कताये हैं।। गोष्ठी का संचालन करते हुए ऋषिकेश भार्गव ने होली गीत इस तरह रखा कि मारो न भर पिचकारी, सजन में तो हो गई तिहारी। भीगी चुनर मोरी सारी, मैं तो हो गई तिहारी।।
गोष्ठी में व्ही.पी.सिंह जादोन, आनंद कृष्णानी, सत्येन्द्र सिंह सिसोदिया, राजेंद्र भार्गव, जे.पी.शर्मा व् अन्य श्रोता गण उपस्थित रहे| कार्यक्रम के अंत में साहित्य परिषद् के कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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