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हिट एंड रन केस में सजा दर 50 फीसदी से भी कम

नई दिल्ली । वाहन चालकों विशेषकर ट्रक चालकों की हड़ताल से पूरा देश हलाकान हुआ। वे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के स्थान पर लाए गए नए कानून भारतीय न्याय संहिता में टक्कर मारकर भाग जाने वाले वाहन चालकों के लिए सजा को दो साल से बढ़ाकर दस साल किए जाने का विरोध कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस हड़ताल के कारण पश्चिमी और उत्तरी भारत में लगभग 2000 पेट्रोल पंपों डीजल-पेट्रोल की कमी हो गई। हालांकि गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ वार्ता के बाद मंगलवार की देर रात हड़ताल समाप्त कर दी गई। मंत्रालय ने यूनियनों को भरोसा दिया है कि कानून को लागू करने से पहले उनकी सलाह ली जाएगी। हिट ऐंड रन के मामलों में चालक टक्कर मार कर भाग जाता है और पुलिस को सूचना नहीं देता है। अधिकारियों ने एक दिन पहले यह भी कहा था कि नए कानूनों में भले कड़ी सजा का प्रावधान हो, लेकिन यदि चालक दुर्घटना के बाद स्वयं पहल कर पुलिस को सूचना देता है तो उसकी सजा और जुर्माना कम करने पर विचार किया जा सकता है।
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)के अनुसार देश में हिट ऐंड रन यानी टक्कर मार कर भाग जाने के आधे से अधिक मामलों में आरोपी को सजा नहीं मिल पाती अथवा मुकदमा निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाता। ऐसे मामलों में सजा की दर या अदालतों में सुनवाई पूरी होने की दर वर्ष 2022 में 47.9 प्रतिशत ही थी। वर्ष 2020 (58.1 फीसदी) और 2021 (51.9 फीसदी) को छोड़ दें तो हिट ऐंड रन के मामलों में बीते पांच में से तीन वर्षों में सजा की दर 50 फीसदी से नीचे ही रही। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक अन्य गंभीर अपराधों के मामले में सजा की दर भी बहुत कम दर्ज की गई है। हत्या के मामले में सजा की दर वर्ष 2022 में केवल 43.8 फीसदी ही थी, जबकि अपहरण के मामलों में तो यह और भी कम 33.9 फीसदी रही।
एनसीआरबी से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि फैसले का इंतजार कर रहे हिट ऐंड रन के मामलों की संख्या पिछले पांच सालों में तेजी से बढ़ी है। मुकदमों के लंबित होने की दर 2018 में जहां 90.4 फीसदी थी, वहीं 2022 में यह बढ़कर 93 फीसदी पहुंच गई।
वर्ष 2022 के दौरान प्रति दिन हिट ऐंड रन के औसतन 131 मामले हुए। इस प्रकार वर्ष 2018 में जहां ऐसे दुर्घटनाओं की संख्या 47,028 दर्ज की गई थी वहीं 2022 में यह बढ़कर 47,806 हो गई। वर्ष 2022 में हिट ऐंड रन के पीडि़तों की संख्या 50,815 रही। हालांकि महामारी के दौरान इस संख्या में काफी कमी दर्ज की गई थी, लेकिन ऐसे मामले अब दोबारा बढ़ने लगे हैं। मालूम हो कि वर्ष 2019 में पीडि़तों की संख्या 52,540 थी।

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