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माघ पूर्णिमा पर बेणेश्वर मेले में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात सहित अन्य राज्यो से बड़ी संख्या में पहुंचते है श्रद्धालु।

– 240 सालो पहले संत मावजी की भविष्यवाणी के उद्गम स्थल पर भरता है मेला
-आज भी सटीक सिद्ध हो रही भविष्यवाणी
डूंगरपुर । वागड़ की धरा पर 240 साल पहले भगवान कृष्ण के अंश अवतारी माने जाने वाले मावजी महाराज की कर्मस्थली और जन्मस्थली पर भरने वाले माघ पूर्णिमा के मुख्य मेले में जनमानस की भीड़ उमड़ पड़ी और डूंगरपुर में सोम, माही और जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम बेणेश्वर धाम पर शनिवार को माघ पूर्णिमा के मुख्य मेले में बड़ी संख्या श्रद्धालू पहुंचे है । वागड़ के महाकुंभ नाम से जाने जाने वाले बेणेश्वर मेले में पांच दिनों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आए हैं। इस मेले में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देशभर से श्रद्धालू रहे है। डूंगरपुर में यह मेला पांच दिन तक पूरे परवान पर रहता है। और जिला प्रशासन भी इसकी व्यवस्था में लगा रहता है। डूंगरपुर जिले के साबला गांव में संत मावजी की जन्मस्थली बेणेश्वर की मिट्टी को साद समाज के लोग विशेष रूप से पूजते है। वही संत मावजी के लिखे चौपड़े में अंकित वायरे वात होवेगा, परिए पाणी वेसाएगा, डोरिए दिवा बरेंगा पर्वत गिरी ने पाणी होसी जैसी कई भविष्यवाणियां आज भी सटीक सिद्ध हो रही है।
मेले के दौरान महंत अच्युतानंद महाराज की पालकी यात्रा शामिल हुए श्रद्धालुओं ने जोर शोर से जयकारे लगा कर मेले का माहौल परवान चढ़ाया। श्रद्धालुओं ने सुबह सूर्य की पहली किरण में सोम, माही और जाखम नदियों के पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किए। उसके बाद मेला घाट पर पूजा अर्चना करने के बाद श्रद्धालुओं ने राधा कृष्ण मंदिर, शिवालय, ब्रह्माजी मंदिर, वाल्मिकी मंदिर में दर्शन किए। दर्शनों के बाद लोग मेले में जम कर खरीदारी कर रहे है । मेले में एक हजार से ज्यादा हाट बाजार जैसी दुकान लगी है। जहां लोग घरेलू कामकाज के सामान के साथ ही खेतीबाड़ी के साथ विभिन्न औजारो की खरीदारी कर रहे है। वहीं, मेले में लगे झूले, चरखे का भी लुफ्त उठा रहे है।
बांसवाड़ा रियासत ने 150 साल पहले बेणेश्वर टापू को अपने कब्जे में लिया,16 साल तक मेला बंद रहा :
संत मावजी की धरती बेणेश्वर (साबला) में सालो से चले आ रहे मेले को लेकर 150 साल पुराना वाकया भी जुड़ा है,जब मेले की बढ़ती लोकप्रियता को देख कर बांसवाड़ा रियासत ने इस पूरे टापू को अपने कब्जे में ले लिया। दरअसल बेणेश्वर डूंगरपुर और बांसवाडा की सीमा पर अवस्थित है और सीमा संगम स्थल होने के कारण जबरन कब्जे से विवाद उत्पन्न हो गया और इसके कारण 16 तक मेला बंद रहा । जिसके बाद अंग्रेजी काल में लेफ्टिनेंट कर्नल ए एम मैकेंजी ने 3 मार्च 1869 को इस विवाद को निपटाया और इसे डूंगरपुर राज्य के अधिकार में दिया। इसी दौरान मेला पुनः 1866 से शुरू हो गया। लेकिन वर्ष 1849 से 1865 तक मेला बंद रहा।

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