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राहुल गांधी की सदस्यता में तानाशाही का प्रदर्शन

लोकतंत्र में भेदभाव की राजनीति
          लोकसभा सदस्य राहुल गांधी की सदस्यता अधिनियम-1951 के तहत चली गई है। इसी अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश के विधायकों अजब सिंह कुशवाह और प्रहलाद लोधी को भी उनकी सदस्यता बचाने में सफलता मिली है। इन विधायकों को कोर्ट ने दो-दो साल की सजा सुनाई थी, लेकिन उनकी सदस्यता अभी भी बरकरार है।
यह समाचार मामला देश में राजनीतिक मंचों पर बहुत चर्चा हुआ था। इस मामले में दोनों विधायकों ने अपनी सदस्यता को बचाने के लिए कई न्यायिक जुगाड़ों का सहारा लिया था।
भाजपा विधायकों को स्टे से बचा लिया
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी को निर्वाचन आयोग से जानकारी छिपाने का दोषी मानते हुए कोर्ट ने निवार्चन शून्य करने के निर्देश दिए थे, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों को उच्च न्यायालय से स्टे लाने का मौका देकर विधायकी बचा ली।
इस संबंध में, मैं बता दूं कि यह मामला भाजपा विधायक जजपाल सिंह जज्जी के द्वारा उठाया गया था, जिन्होंने राहुल सिंह लोधी को फर्जी जाति प्रमाण पत्र का दावा करने के आरोप में निर्वाचन आयोग से शिकायत की थी।
उच्च न्यायालय ने जजपाल सिंह जज्जी को दोषी मानते हुए निवार्चन शून्य करने के निर्देश दिए थे, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में विधायकों की मदद करते हुए विधायकी बचा ली।
इस मामले में न्याय की प्रक्रिया के अनुसार, विधायकों को उच्च न्यायालय से स्टे लाने का मौका देना संवैधानिक है। इसलिए, विधानसभा अध्यक्ष द्वारा विधायकों को स्टे लाने का मौका दिया
वाकई, आपने सही बताया है। वर्तमान गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ उनकी पूर्व विधायक सिंहिता द्वारा दायर किए गए एक मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। यह मामला साल 2021 में दायर किया गया था।
2008 के मामले में, कांग्रेस प्रत्याशी राजेश भारती ने पेड न्यूज का मामला लगाया था, जिसमें चुनाव आयोग ने मिश्रा को तीन साल के लिए अयोग्य करार दिया था। लेकिन उन्होंने अपनी याचिका दाखिल करने से पहले अपने आदेश को लगातार अस्वीकार किया था। इस मामले में अभी भी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है और आगे की सुनवाई के लिए तारीखें तय नहीं हुई हैं
यह है प्रावधान
लोक लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत जनप्रतिनिधि की सदस्यता जारी रखने के लिए उन्हें आदर्श आचरण और सामान्य जनता के भरोसे को बनाए रखना आवश्यक है। यदि उन्हें आपराधिक सजा होती है, तो इस प्रावधान के तहत उनकी सदस्यता समाप्त की जाती है।
इस प्रावधान का उद्देश्य उन सदस्यों को रोकना है जो अपनी सदस्यता का उपयोग अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए करते हैं या जो अपने अपराधों से लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, यह उन सदस्यों को भी रोकता है जो अपने कार्यकाल के दौरान गलत तरीके से व्यवहार करते हैं या जो अपने कार्यकाल के बाद भी जनप्रतिनिधि बने रहना चाहते हैं।

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