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एम्स भोपाल में आठ माह के बच्चे को मिला नया जीवन

भोपाल । एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ ) अजय सिंह के मार्गदर्शन में सफलता की एक और कहानी सृजित हुई। आठ महीने की छोटी सी उम्र और दिल में बड़ा सा छेद। उसके पिताजी देश के कई शहरों में अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। लेकिन निराशा हाथ लगी। हर जगह से निराश होकर भोपाल आए, यहां एम्स में डाक्टरों को दिखाया और तब एक आशा की किरण नजर आई। यह कहानी है आठ महीने के बच्चे हितेश की। जिसके हृदय में जन्म से ही एक बड़ा छेद था, जिसे वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष कहते हैं। इस बीमारी में दिल के दो निचले कक्षों के बीच की दीवार में एक छेद बन जाता है । जब छेद बंद नहीं होता है, तो इससे दिल में दबाव बढ़ सकता है या शरीर में ऑक्सीजन कम हो सकती है। बच्चा डाउन सिंड्रोम से भी पीड़ित था। डाउन सिंड्रोम एक ऐसी अनुवांशिक स्थिति जिसमें बच्चा अपने 21वे गुणसूत्र की एक अतिरिक्त प्रतिलिपि के साथ पैदा होता है। यह शारीरिक और मानसिक विकास संबंधी देरी और विकलांगता का कारण बनता है। इन सारी परिस्थितियों के कारण उसे बार-बार निमोनिया हो जाता था , सांस लेने में दिक्कत होती थी और बच्चे का वजन भी नहीं बढ़ रहा था। जिसके कारण जिंदगी बड़ी मुश्किल हो गई थी। ललितपुर के रहने वाले हितेश के पिताजी ने सोचा की एक बार एम्स भोपाल में भी बच्चे को दिखा लिया जाए। यहां पर सीटीवीएस यानी कार्डियो थोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी की टीम ने जब बच्चे को देखा तो उन्हें इसमें एक चैलेंज नजर आया और उन्होंने चैलेंज को स्वीकार किया। लगभग ढाई घंटे चले इस ऑपरेशन के बाद टीम ने एक राहत भरी सांस ली क्योंकि ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा था। इस ऑपरेशन को अंजाम दिया डॉ योगेश निवारिया और उनकी टीम ने । इनके साथ एनेस्थीसिया की टीम भी मौजूद रही। इस तरह के केस 1000 में से लगभग आठ लोगों लोगों में पाए जाते हैं। यह एक चैलेंज इसलिए भी था कि 8 महीने के बच्चे का वजन सिर्फ 3.3 केजी था। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अजय सिंह ने इस जटिल ऑपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम तक पहुंचाने के लिए सर्जन्स की टीम को बधाई दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि एम्स भोपाल हर चैलेंज को स्वीकार करने के लिए तैयार है और हम इस क्षेत्र में सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाले संस्थानों में से एक है और अपनी उत्कृष्टता के नए आयाम बनाते रहेंगे। ऑपरेशन के लगभग एक हफ्ते तक बच्चे को ऑब्जर्वेशन में रखा गया और उसके बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी।

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