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पहली बार मादा गैंडा आईवीएफ तकनीक से हुई प्रेग्नेंट
वैज्ञानिकों ने किया अनूठा प्रयोग, हुआ सफल
बर्लिन । दुनिया में पहली बार एक मादा गैंडा आईवीएफ तकनीक से प्रेग्नेंट हुई है। बर्लिन में नाजिन और फातू नाम के गैंडों पर इसका प्रयोग किया गया, क्योंकि वे प्राकृतिक तरीके से प्रेग्नेंट नहीं हो पा रही थीं। वैज्ञानिकों ने एक सींग वाले गैंडे पर इसका प्रयोग किया गया है और नतीजे खुश करने वाले हैं। जर्मनी में लेबनीज इंस्टीट्यूट फॉर जू एंड वाइल्डलाइफ रिसर्च की वैज्ञाननिक सुसैन होल्ज ने बहुत बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा, अब हम भरोसे के साथ कह सकते हैं कि आने वाले समय में हम सफेद गैंडों जैसी विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने में कामयाब होंगे। सामान्य तौर पर कम हिंसक माने जाने वाले सफेद गैंडे सेंट्रल अफ्रीका के जंगलों में मिलते थे। लेकिन इनकी सिंग की डिमांड ज्यादा होने से काफी तेजी से इनका शिकार होने लगा। नतीजा, अब सिर्फ 2 गैंडे ही धरती पर बचे हैं। मादा नाजिन और उसकी साथी फातू।
पहले ये चिड़ियाघर में रहते थे, अभी इन्हें केन्या के ओल पेजेटा कंजरवेंसी में कड़ी सुरक्षा के तहत रखा गया है। दोनों प्रजनन करने में असमर्थ थे, इसलिए आईवीएफ का सहारा लिया गया। प्रोजेक्ट से जुड़े साइंटिस्ट हिल्डरब्रैंट ने कहा, पहले एक बुल में हमने आइवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया था, लेकिन संक्रमण की वजह से भ्रूण सरवाइव नहीं कर सका। महज 70 दिन में वह बेकार हो गया। इस प्रयोग में साइंटिस्ट को वर्षों लग गए। 2 टन वाले इन भारी भरकम जानवरों से अंडे एकत्र किए गए? प्रयोगशाला में उनका भ्रूण बनाने और यह स्थापित करने में काफी समय खर्च हुआ कि उन्हें कब प्रत्यारोपित किया जाए।
आप जानकर हैरान होंगे कि आईवीएफ के एक-दो नहीं बल्कि 13 बार प्रयास हुए। इतने बड़े जानवर में प्रजनन पथ के अंदर भ्रूण को रखना बहुत चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि यह शरीर में लगभग 2 मीटर अंदर था। वैज्ञानिकों ने बताया कि तब भ्रूण को बेल्जियम के एक चिड़ियाघर से दक्षिणी सफेद मादा के अंडे का उपयोग करके बनाया गया। ऑस्ट्रिया में एक नर के शुक्राणु के साथ फर्टिलाइज किया गया। केन्या में एक दक्षिणी सफेद सरोगेट मादा में इसे ट्रांसफर किया गया, और आखिरकार वह प्रेग्नेंट हो गई। लेकिन प्रेग्नेंसी के 70 दिन बाद ही सरोगेट मां की संक्रमण से मौत हो गई। मिट्टी में पाए जाने वाले एक वैक्टीरिया की वजह से उसकी जान चली गई। लेकिन पोस्टमार्टम से पता चला कि 6.5 सेमी का नर भ्रूण अच्छी तरह से विकसित हो रहा था और उसके जीवित पैदा होने की 95 प्रतिशत संभावना थी।
यह उम्मीद जगाने वाली थी। अब अगला कदम उत्तरी सफेद गैंडे के भ्रूण का उपयोग करके इसे आज़माना था। इन्हें केन्या की युवा मादा फातू से प्राप्त अंडों और मरने से पहले दो नर उत्तरी सफेद गैंडों से एकत्र किए गए शुक्राणु का उपयोग करके भ्रूण बनाया गया था। और आखिरकार इसमें हम सफल हो गए। बता दें कि यह उत्तरी सफेद गैंडों की एक प्रजाति है और सिर्फ यही 2 गैंडे धरती पर बचे हुए हैं। विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए यह प्रयोग काफी कारगर हो सकता है। और अगर अंत सफल रहा तो धरती पर ऐसे जीवों की भरमार हो सकती है।