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बिल्किस बानो याचिका मामले में सुनवाई 27 मार्च को, दोषियों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

नई दिल्ली । राजनीतिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं और बिल्किस बानो द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करेगी। इससे पहले 22 मार्च को, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।

बिल्किस बानो मामले में रिहा चल रहे दोषियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के खिलाफ दर्ज याचिका पर सुनवाई के लिए नई पीठ का गठन कर दिया है। इतना ही नहीं मामले में गठित की गई नई पीठ 27 मार्च को सुनवाई करेगी। गौरतलब है कि साल 2002 में बिल्किस बानो के साथ गैंगरेप के मामले में सभी 11 दोषियों को समय पूर्व ही रिहा कर दिया गया था। दोषियों को उम्रकैद की सजा हुई थी लेकिन 15 अगस्त 2022 को गुजरात की गोधरा जेल में सजा काट रहे इन कैदियों को गुजरात सरकार ने सजा माफी की नीति के तहत रिहा कर दिया था। रिहा किए गए लोगों में से कुछ 15 साल तो कुछ 18 साल की जेल काट चुके हैं। 
इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी पीठ
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की यह पीठ कई राजनीतिक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं और बिल्किस बानो द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करेगी। इससे पहले 22 मार्च को, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था। साथ ही दलीलों के बैच की सुनवाई के लिए एक नई पीठ गठित करने पर सहमति व्यक्त की थी।
गौरतलब है कि बिल्किस बानो ने पिछले साल 30 नवंबर को शीर्ष अदालत में राज्य सरकार द्वारा 11 लोगों को आजीवन कारावास से समय से पहले रिहाई को चुनौती दी थी। साथ ही यह भी कहा था कि इसने समाज की अंतरात्मा को हिला दिया है। वहीं, 4 जनवरी को जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने बानो द्वारा दायर याचिका और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की थी। हालांकि, न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने बिना कोई कारण बताए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका भी लगाई
दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका के साथ ही बिल्किस बानो ने 13 मई 2022 को दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इसमें शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 को एक दोषी की याचिका पर दिए गए आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी। हालांकि समीक्षा याचिका को बाद में पिछले साल दिसंबर में खारिज कर दिया गया था।
15 अगस्त 2022 को हुई थी दोषियों की रिहाई
13 मई 2022 को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर विचार करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की उसकी नीति पर विचार करने को कहा था। इसके बाद ही 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने दोषियों को समय पूर्व रिहा करने का आदेश दिया था। बता दें कि 2002 के दंगों के दौरान बिल्किस बानो के परिवार के सात लोगों की हत्या भी कर दी गई थी। 
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली 14 विपक्षी पार्टियों की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। इस याचिका में विपक्षी पार्टियों ने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया है। शीर्ष कोर्ट की सहमति के बाद पांच अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई होगी। 
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने द्रमुक, राजद, भारत राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जद (यू), भाकपा (एम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे विपक्षी दलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी की दलीलों पर ध्यान दिया। 
अपनी दलीलें देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि मैं भविष्य के लिए दिशानिर्देश मांग रहा हूं। यह सीबीआई और ईडी दोनों एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ 14 दलों का एक उल्लेखनीय अभिसरण है। उन्होंने पीठ के समक्ष यह भी दावा किया कि सीबीआई और ईडी के पचानवे प्रतिशत मामले विपक्ष के नेताओं के खिलाफ हैं। .
इतना ही नहीं वरिष्ठ वकील ने एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सीबीआई और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या में बढ़ोतरी का भी उल्लेख किया। उनकी दलीलों को सुनने के बाद शीर्ष कोर्ट ने कहा कि याचिका पर 5 अप्रैल को सुनवाई की जाएगी।
गोधरा ट्रेन आगजनी में दोषियों, गुजरात सरकार की याचिकाओं पर होगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट 2002 के गोधरा ट्रेन आगजनी मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे दोषियों व गुजरात सरकार की याचिकाओं का निपटारा 10 अप्रैल को करेगा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ को गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि उन्हें कुछ दोषियों के बारे में तथ्यात्मक विवरणों को सत्यापित करना है। पीठ ने मेहता की बात को स्वीकार किया और मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल तय कर दी। पीठ ने कहा, दोषियों की लंबित जमानत अर्जियों का निपटारा अगली सुनवाई में किया जाएगा। पीठ ने दोषी की जमानत इस आधार पर बढ़ा दी कि उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित है। मेहता ने भी इस पर सहमति जताई। इससे पहले 17 मार्च को शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह 24 मार्च को गुजरात सरकार की अपील और मामले के कई आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी।
नागरिक संसद में खड़े होने का अधिकार नहीं मांग सकते: SC
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र और अन्य को एक उपयुक्त प्रणाली बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था कि ऐसी प्रणाली जो नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार-विमर्श शुरू करने का अधिकार देती हो।
याचिका का खारिज करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि एक नागरिक संसद में खड़े होने का अधिकार नहीं मांग सकता है। उन्होंने कहा कि जो राहत मांगी गई है वह विशेष रूप से संसद के अधिकार क्षेत्र में आती है। इस तरह के निर्देश इस न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में जारी नहीं किए जा सकते हैं।
अमेरिकी अदालत के फैसलों पर अमल करने से पहले भारतीय परिदृश्य पर विचार करें: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिकी अदालतों के फैसलों का पालन करने से पहले भारतीय अदालतों को संबंधित देशों में लागू कानूनों की प्रकृति में अंतर पर विचार करना होगा। जस्टिस एमआर शाह, सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि 2011 में सुनाए गए तीन फैसले जिसमें कहा गया था कि एक प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता से किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता है और कोई ऐसा कृत्य करता है जिसका इरादा है हिंसा का सहारा लेकर अव्यवस्था या सार्वजनिक शांति भंग करना, एक अच्छा कानून नहीं है।
पीठ ने कहा कि तीनों फैसले अपने निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए अमेरिकी अदालत के फैसलों पर निर्भर थे। ऐसे में अदालत को अमेरिकी कानूनों और भारतीय कानूनों में अंतर, विशेष रूप से भारतीय संविधान में प्रावधानों पर विचार करना चाहिए था।  
शीर्ष कोर्ट ने बताया UAPA का मुख्य उद्देश्य
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराना है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। 
न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय एकता परिषद ने अन्य बातों के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों में उचित प्रतिबंध लगाने के पहलू को देखने के लिए राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीयकरण पर एक समिति नियुक्त की और उसके बाद यूएपीए अधिनियमित किया गया। इसलिए, यूएपीए भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराने के लिए अधिनियमित किया गया है। 

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