Uncategorized

महाराष्ट्र में तीन साल का गठबंधन एक रात में कैसे टूटा?’ राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध : डी वाई चंद्रचूड़

नई दिल्ली । मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा एक पार्टी के भीतर विधायकों के बीच मतभेद किसी भी आधार पर हो सकता है जैसे कि विकास निधि का भुगतान या पार्टी लोकाचार से विचलन, लेकिन क्या यह राज्यपाल के लिए शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने के लिए पर्याप्त आधार हो सकता है? 

महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सत्ताधारी दल के विधायकों के बीच मतभेदों के आधार पर विश्वास मत के लिए बुलाना एक निर्वाचित सरकार को गिरा सकता है। ऐसे में फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए राजनीतिक दलों में असंतोष ही राज्यपाल के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। राज्यपाल के ऐसा करने से एक निर्वाचित सरकार गिर भी सकती है। इस दौरान पीठ ने पिछले साल जून में हुए महाराष्ट्र के सियासी संकट में राज्यपाल की भूमिका पर कई अहम सवाल उठाए।
राज्यपाल की भूमिका चिंतित करने वाली
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जून 2022 के दौरान महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के वफादार विधायकों द्वारा शिवसेना की सरकार गिराने से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए कहा एक पार्टी के भीतर विधायकों के बीच मतभेद किसी भी आधार पर हो सकता है जैसे कि विकास निधि का भुगतान या पार्टी लोकाचार से विचलन, लेकिन क्या यह राज्यपाल के लिए शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने के लिए पर्याप्त आधार हो सकता है? वे इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं।
पीठ ने कहा कि किसी भी राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा। इससे लोग सत्तारूढ़ पार्टी को धोखा देना शुरू कर देंगे और राज्यपाल सत्ताधारी पार्टी को खत्म कर देंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद तमाशा होगा।
महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा घटनाक्रम को सुनाने के बाद पीठ ने यह टिप्पणी की। उन्होंने पीठ को बताया था कि राज्यपाल के पास शिवसेना के 34 विधायकों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र, निर्दलीय सांसदों का एक पत्र सहित कई ऐसी सामग्रियां थीं जिसने उद्धव ठाकरे सरकार को विश्वास मत साबित करने का आदेश देने के लिए प्रेरित किया था।
विपक्ष के नेता का एक पत्र प्रासंगिक नहीं
इस पीठ में जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता का एक पत्र इस मामले में मायने नहीं रखता क्योंकि वह हमेशा लिखता रहेगा कि सरकार ने बहुमत खो दिया है या विधायक खुश नहीं हैं। ऐसे में विधायकों का पत्र कि उनकी सुरक्षा को खतरा है, इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।
राज्यपाल को करना चाहिए था सवाल
सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा कि विधायक तीन साल तक कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन में थे और फिर अचानक एक दिन में ऐसा क्या हुआ कि वे गठबंधन से बाहर जाना चाहते थे। बाद में बागी विधायक दूसरी सरकार में मंत्री बने। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इसका जवाब राज्यपाल नहीं दे सकते। इस पर सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल को खुद से यह सवाल करना चाहिए था।
इससे पहले, दो मार्च को शिंदे गुट ने शीर्ष अदालत से कहा था कि जून 2022 के महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित याचिकाएं राजनीति के दायरे में आती हैं। ऐसे में न्यायपालिका को इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
गौरतलब है कि बी एस कोश्यारी, उस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल थे, उन्होंने उद्धव ठाकरे से बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का सामना करने के लिए कहा था। हालांकि, फ्लोर टेस्ट में अपनी हार को देख उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया था। जिससे एकनाथ शिंदे के लिए मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

Related Articles