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पूंजी के संदर्भ में समावेशी विकास

मनीष शाह, गोदरेज कैपिटल के एमडी और सीईओ 

संख्याएं अवसर और चुनौती दोनों का प्रतिनिधित्व करती हैं: देश में 63 मिलियन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) हैं, देश की जीडीपी में इनका योगदान लगभग एक तिहाई है और निर्यात में 50 प्रतिशत की भारी हिस्सेदारी है। वही ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इनकी पहुंच बराबर है और क्रेडिट गैप(ऋण की कमी) भी 530 अरब डॉलर की है। 
भारत की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुरूप, एमएसएमई सेक्टर का दायरा लगातार बढ़ता रहेगा, खासकर जब से इसे औपचारिक रूप दिया गया है। हालांकि, इस क्षेत्र को अपनी वास्तविक क्षमता तक पहुंचने के लिए क्वॉलिटेटिव ग्रोथ (गुणात्मक विकास) की भी जरूरत है।
“I got 99 problems and money ain’t the only one (मेरे पास 99 समस्याएं हैं और पैसा केवल एक ही समस्या नहीं है)” —मॉन्स्टर हिट ’99 प्रॉब्लम्स’ की यह पंक्ति फेमस रैपर जे ज़ेड ने संगीतबद्ध किया है। यह भारत में एमएसएमई उद्यमियों का सामूहिक स्वर हो सकता है। धन की पहुंच और ऋण की भूख की कमी छोटे व्यवसायों के विकास पथ में एकमात्र बाधा नहीं है। इसीलिए, एमएसएमई को उधार देने के सवाल के साथ-साथ, हमें यह भी पूछना चाहिए कि एमएसएमई को और अधिक उधार देने योग्य कैसे बनाया जाए?
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले, हमें एमएसएमई के ग्रोथ और उसके भविष्य को लेकर तीन नजरिए पर विचार करना होगा- ग्राहक आधार बढ़ाना; प्लानिंग बिजनेस ऑपरेशंस (व्यवसाय संचालन की योजना बनाना), और कर्मचारी उत्पादकता बढ़ाना।
ग्राहक आधार बढ़ाना
भारत की आर्थिक प्रगति का सीधा संबंध मांग में बढ़ोतरी से जुड़ा है। नवंबर 2022 में, डेटा कंपनी ईसीए इंटरनेशनल की सैलरी ट्रेंड्स रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई थी कि भारत में वास्तविक वेतन 4.6 प्रतिशत बढ़ा है, जो वियतनाम के 4 प्रतिशत और चीन के 3.8 प्रतिशत से अधिक था। सितंबर 2023 में, रिसर्च फर्म बीएमआई ने भविष्यवाणी की थी कि वास्तविक घरेलू खर्च में 29 प्रतिशत की वृद्धि के कारण भारत 2027 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जाएगा।
एमएसएमई के लिए सवाल यह है कि वे होलसेल एंड रिटेल (थोक और खुदरा) दोनों स्तरों पर इन उपभोक्ताओं को कैसे ढूंढेंगे। सूरत के एक 34 वर्षीय उद्यमी ने हाल ही में इस चुनौती के बारे में हमसे बात की। उनकी फर्म पीईटी प्रीफॉर्म्स बनाती है, और उनके प्राथमिक ग्राहक मिनरल वाटर और शीतल पेय उत्पादक हैं। वह एक टिपिकल एमएसएमई मैन्यूफैक्चरिंग के एक उदाहरण हैं। अपने ग्राहकों की बढ़ती जरूरतों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने वाले एक सजग उद्यमी हैं।
वह जानते हैं कि उनके पास प्रतिस्पर्धी कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाला उत्पाद है, लेकिन फिर भी उसे नए बाजार और ग्राहक ढूंढने में परेशानी होती है। इसका कारण इन्फॉर्मेशन एसिमिट्री (सूचना विषमता) है। कुछ वेबसाइट्स आईएसआई- कम्प्लाइंट वाटर मैन्यूफैक्चरर्स की सूची बनाती हैं, लेकिन उन्हें शायद ही अपडेट किया जाता है। उनके उद्योग में दूसरा मुद्दा यह है कि कुछ बड़े खिलाड़ी एक्सपोर्ट मार्केट (निर्यात बाजार) पर कब्जा कर लेते हैं, और छोटे व्यवसाय जानकारी के अभाव में पीछे रह जाते हैं।
प्लानिंग बिजनेस ऑपरेशंस (व्यवसाय संचालन की योजना बनाना)
पिछले कुछ वर्षों में, भारत के बुनियादी ढांचे में काफी बदलाव देखा गया है। सितंबर 2023 में हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू अर्टिकल्स में एक दिलचस्प डेटा बिंदु पर प्रकाश डाला,सकल सरकारी व्यय के प्रतिशत के रूप में, भारत में पूंजीगत व्यय साल 2010 में 11 प्रतिशत से बढ़कर साल 2023 में 22 प्रतिशत (अनुमानित) हो गया है।
इस बुनियादी ढांचे का अधिकांश हिस्सा एमएसएमई के सामने आने वाली लॉजिस्टिक समस्याओं को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, भंडारण के मोर्चे पर काफी प्रगति हुई है। प्रधानमंत्री गति शक्ति कार्यक्रम और राष्ट्रीय रसद नीति सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताएं हैं।
इन पहलों का लाभ उन एमएसएमई ऑपरेटरों तक पहुंचना चाहिए, जो विनिर्माण और उत्पादन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। मुंबई स्थित एक लाइटिंग निर्माता और इंटीरियर प्रोजेक्ट सलाहकार ने हमें बताया, ‘भले ही मैं बी2सी कंपनी बनना चाहता हूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं प्रोडक्शन इश्यू को लेकर फंस गया हूं। ब्रांड बनाने के लिए कोई बैंडविड्थ नहीं है क्योंकि स्केलिंग बहुत ही कठिन है।’
उनका बैंक और उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट अक्सर निजी फंडिंग और कभी-कभी सरकारी योजनाओं के बारे में उन्हें सलाह देते हैं, लेकिन वह और अधिक की तलाश में है। यहां फिर से, सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी सेक्टर स्पेसिफिक स्कीम्स (क्षेत्र-विशिष्ट योजनाओं) के बारे में सूचना प्रसार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
कर्मचारी उत्पादकता को बढ़ावा देना
2023 के मध्य में, गोल्डमैन सैक्स रिसर्च ने अनुमान लगाया कि भारत 2075 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उस मील के पत्थर को हासिल करने की कुंजी मानव पूंजी के इस विशाल पूल को सही कौशल प्रदान करना होगा। संभावनाएं भारत के पक्ष में हैं: अगले दो दशकों में, देश का निर्भरता अनुपात, अकार्यशील लोगों की आबादी, जो कामकाजी उम्र की आबादी पर निर्भर है – बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम होगी।
यह जरूरी है कि इस श्रमिक वर्ग को कुशल बनाया जाए और इसे उत्पादक ढंग से संचालित किया जाए। नागपुर के एक 63 वर्षीय व्यवसायी के साथ बातचीत ने हमारे विश्वास को मजबूत किया कि कौशल उन्नयन हर किसी के लिए जरूरी है। वह औद्योगिक और डेकोरेटिव पेंट के निर्माता हैं और ज्यादातर बी2बी क्षेत्र में काम करते हैं।
हमेशा साधन संपन्न और सीखने के लिए उत्सुक, ये उद्यमी नियमित रूप से ऑनलाइन अपस्किलिंग सेशन्ज़ के लिए साइन अप करते रहते हैं। उनके विचार इंडस्ट्री असोसिएशन्स को कर्मचारी प्रशिक्षण के मोर्चे पर अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। यह पलायन को रोकने और अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों को अपने करियर के बारे में अधिक दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से सोचने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में एक अच्छा कदम हो सकता है।
एमएसएमई विकास को अनलॉक करना
ये सारी बातचीत ने हममें यह विश्वास पैदा किया है कि जब एमएसएमई की बात आती है तो कंपनियों को अपने उद्योग से परे देखना चाहिए। ‘मैं एक ऋणदाता हूं इसलिए मैं केवल ऋण ही दूंगा’ – यह रवैया आपको केवल तभी आगे ले जा सकता है जब विकास को अनलॉक करना ही सच्चा उद्देश्य हो। एमएसएमई को आपूर्तिकर्ताओं, ग्राहकों और भागीदारों के रूप में देखा जाना चाहिए। विकास और साझेदारी को वित्तपोषण के साथ-साथ चलना चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों सरकारें भी इसे स्वीकार करती हैं। हाल के वर्षों में, सरकारों ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जो सब्सिडी और फंडिंग से परे हैं, और कौशल विकास, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और मार्केटिंग प्रमोशन (विपणन प्रचार) पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
सरकार, फाइनेंशियल सेक्टर (वित्तीय क्षेत्र), इंडस्ट्री असोसिएशन (उद्योग संघों) और सेक्टर स्पेसिफिक बॉडिज (क्षेत्र-विशिष्ट निकायों) को एक साथ आने की जरूरत है, जो ‘कैपिटल-प्लस-प्लस’ वातावरण बनाने और भारत के लिए अपने महत्वाकांक्षी आर्थिक लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए बेहद जरूरी है। संदर्भ के बिना पूंजी एक बुलबुला है; संदर्भ के साथ पूंजी समावेशी विकास है।

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