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Indore jhulelal mandir tragedy : सीएम पहुंचते ही भीड़ ने मुर्दाबाद के नारे लगाए, 36 मौतों का दोषी कौन?

 इंदौर बावड़ी हादसा: मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष पर गैर इरादतन हत्या का केस
-13 डॉक्टर्स ने लगातार 27 घंटे में किए 36 पोस्टमार्टम
-मरने वालों में 21 महिलाएं और 15 पुरुष हैं, इनमें 3 बच्चे और एक बच्ची भी है
-मंदिर वाली एक गली से निकले 11 शव, हर दूसरे मकान में सजी थी अर्थी, श्मसान में कम पड़ी जगह
Imdore । इंदौर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर हादसे में 36 लोगों की जान चली गई। मामले में मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गलानी पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया है। 20 से ज्यादा लोगों का अभी इलाज चल रहा है। उन्हें न तो यह पता था कि जिस जगह वह जा रहे हैं, वहीं जमीन फट जाएगी और वह सब उसमें समा जाएंगे। हर स्तर पर लापरवाही हुई और इसका शिकार आम भोली-भाली जनता और यहां तक कि दो साल के मासूम तक को होना पड़ा। हादसा गुरुवार को सुबह 11 बजे के करीब हुआ और बावड़ी से लाशें उगलने का क्रम शुक्रवार दिन दोपहर तक जारी रहा। नगर निगम और प्रशासनिक अमला समय रहते सक्रिय होता और जान बचाने की कोशिश करता तो निश्चित तौर पर यह स्थिति नहीं बनती। फैसले लेने में देरी भी मौतों की संख्या बढऩे की जिम्मेदार रही। मरने वालों में 21 महिलाएं और 15 पुरुष हैं। इनमें 3 बच्चे और एक बच्ची भी है।
जिस गली से मंदिर का प्रवेश द्वार है, उस गली के हर दूसरे-तीसरे घर में मौत हुई है। दोपहर तक उन सभी घरों में अर्थियां सज गई थीं। एक गली में 11 लोगों की शव यात्रा निकली। किसी घर में एक तो किसी में दो अर्थियां एकसाथ देखी गईं। चौराहे पर स्थित धर्मशाला के पास खड़े शव वाहनों में इन्हें रखा गया शव वाहनों से पार्थिव देह रीजनल पार्क स्थित मुक्तिधाम तक ले जाए गए। बारी-बारी से ये शव यहां तक लाए गए। जिसने भी ये नजारा देखा, अपने आंसू नहीं रोक सका। रीजनल पार्क के मुक्तिधाम में एक साथ इतनी शवयात्राएं पहुंच गईं। शवों को जलाने के लिए जगह कम पड़ गई। प्लेटफॉर्म के नीचे अंतिम संस्कार करना पड़ा।
हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगाए
घटनास्थल के पास एक धर्मशाला में पटेल समाज के लोग इकट्ठा हुए थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुक्रवार सुबह उनसे मिलने पहुंचे। यहां भीड़ ने हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगाए। हादसे में पटेल समाज के 11 लोगों की मौतें हुई है। समाज के पदाधिकारियों ने कहा- जिन लोगों के यहां मौत हुई है, उनके परिवार से सीएम को मिलना चाहिए था। अफसरों ने पहले बताया गया था कि मुख्यमंत्री परिवार से मिलेंगे और उनकी पीड़ा जानेंगे। बाद में कार्यक्रम कैंसिल कर दिया गया।
डॉक्टरों की भी रूह कांप गई
 बावड़ी की छत धंसने से 36 लोगों की मौत के बाद इतनी संख्या में एक साथ शवों के पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर भी सिहर गए। पोस्टमॉर्टम करने वाली टीम को लीड कर रहे डॉ. पीएस ठाकुर ने बताया कि गुरुवार दोपहर 3 बजे से अगले दिन शुक्रवार सुबह के 9 बजे तक उनकी टीम बिना पलक झपकाए पोस्टमॉर्टम में लगी रही। टीम में 7 सीनियर डॉक्टर, 6 जूनियर डॉक्टर और 3 स्वीपर थे। उन्होंने बताया कि वैसे तो हम रोजाना पोस्टमॉर्टम करते हैं, लेकिन रामनवमी का दिन और रात हमारी अब तक की जिंदगी का सबसे भयावह रही। जब लाशें आनी शुरू हुईं तो एक के बाद एक बढ़ती ही गईं। हर लाश के बाद हम सोच रहे थे कि ये उस हादसे में जान गंवाने वालों की आखिरी लाश होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिरी शव शुक्रवार दोपहर बाद पहुंचा। हमने अपनी जिंदगी में कभी एक साथ इतनी लाशों का पोस्टमॉर्टम नहीं किया है। एक साथ इतने शव देखकर हमारी रुह कांप गई है। डॉ. ठाकुर ने बताया कि जो लोग नीचे दबे थे उनमें से ज्यादातर की मौत पानी में डूबने से हुई है, जो बीच में फंसे थे, उनकी मौत दम घुटने से हुई।
रेस्क्यू में लगे लोगों को भगवाया
पाटीदार समाज के उपाध्यक्ष कीर्ति भाई पटेल ने बताया कि घटना में हमारे समाज के कई लोग चपेट में आए थे। हमारे लोगों ने रेस्क्यू शुरू किया। कुछ लोगों को निकाल भी लिया था, लेकिन पुलिस ने हमें डंडे मारकर भगा दिया। मैं स्वयं पांच मिनट में पहुंच गया था। मैं रस्सी डालकर खड़ा था, जिसमें सात आदमी लटके थे। लेकिन प्रशासन ने हमें डंडे मारकर भगा दिया। इससे वे सभी बावड़ी में गिर गए। पटेल का कहना है कि प्रशासन हमें रेस्क्यू करने देता तो शायद हम अधिक लोगों को निकाल पाते।
पुलिस के पास रस्से तक नहीं थे
बता दें कि रेस्क्यू करने पहुंची पुलिस के पास रस्से तक के इंतजाम नहीं थे। फायर ब्रिगेड के कर्मचारी रोप लाइडर से नीचे उतरे। नगर निगम को बावड़ी का पानी खाली करने का इंतजाम करने में ही 4 घंटे से ज्यादा का समय लग गया। एनडीआरएफ को सात घंटे बाद बुलाया गया, जबकि इंदौर के ही महू में छावनी , लेकिन वहां से सेना बुलाने में प्रशासन को 11 घंटे से अधिक का समय लग गया। सेना के पहुंचने के पहले तक 14 लोगों के शव मिले थे, जबकि 24 लोग तब भी लापता थे। जवानों ने चंद घंटे में ही बाकी के शवों को भी निकाल लिया।
चूक नंबर 1
हादसे की गंभीरता नहीं भांप पाए अफसर: अफसरों को लगा कि हादसा छोटा-मोटा है। कुछ लोग दबे होंगे और बच जाएंगे। यही वजह है कि डेढ़ से दो घंटे बाद बड़े अफसर और प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा। तब तक स्थानीय लोग ही हाथ-पैर मारते रहे। जो पुलिस वाले सबसे पहले पहुंचे, वह भी हालात को भांप नहीं सके। कपड़ों और रस्सियों की मदद से लोगों को निकालने की कोशिश करते रहे। एंबुलेंस और अन्य अमला तक एक से डेढ़ घंटे बाद मौके पर पहुंचा।
चूक नंबर 2
सेना को बुलाने में की देरी: सेना और एनडीआरएफ को बुलाने का फैसला देर से लिया गया। वह भी देर शाम को। तब तक किसी के बचने की उम्मीद भी खत्म हो गई थी। यदि सबसे पहले एनडीआरएफ को बुलाया गया होता तो निश्चित तौर पर वह अपनी विशेषज्ञता और संसाधनों के दम पर जल्द से जल्द कुछ और जानों को बचा पाते। आखिर महू से इंदौर की दूरी महज 35-36 किमी ही तो है। वहां से सेना को बुलाते तो एकाध घंटे में मदद भी मिल जाती। ऐसा लगा कि सेना और एनडीआरएफ की टीमों को सिर्फ लाशें निकालने के लिए ही बुलाया था।
चूक नंबर 3
बुनियादी प्रशिक्षण भी नहीं: पुलिस और नगर निगम की टीम के आने से पहले रहवासी गिरे हुए लोगों को निकाल रहे थे। पुलिसवालों ने सख्ती दिखाते हुए उन्होंने वहां से भगा दिया। अब लोग आरोप लगा रहे हैं कि उनकी रस्सी से कुछ लोग लटके थे। पुलिस ने डंडे मारकर भगाया तो वे लोग गिर गए और उनकी मौत हो गई। यहां डंडे वाली पुलिस नहीं बल्कि संवेदनशील और समझदार पुलिस की जरूरत थी जो समय पर आवश्यकता के अनुसार फैसले लेती और अधिक से अधिक जानों को बचाने की कोशिश करती। पुलिस और नगर निगम वाले तो बावड़ी में रस्से डालकर हिलाते रहे कि कोई पकड़ लेगा और ऊपर आ जाएगा।
चूक नंबर 4
शेड नहीं हटाया, क्रेन भी एक ही लाए: बावड़ी के ऊपर शेड हटाए बिना राहत कार्य शुरू कर दिए। एक क्रेन की मदद ली। शेड हटाकर अन्य क्रेनों की मदद से लोहे की जालियां हटा देते तो 24 घंटे तक लाशें निकालने की कोशिश नहीं करनी पड़ती। इतना ही नहीं, पानी निकालने का फैसला भी शाम को लिया गया, तब तक कई लोगों की मौत हो चुकी थी। बावड़ी में से जो लोग जिंदा बचे हैं, उनकी मदद सीढिय़ों ने की। कुछ तो गिरने के बाद सीढिय़ों पर बैठ गए थे और मदद का इंतजार कर रहे थे। कुछ सीढिय़ों की मदद से बाहर निकल आए थे।
चूक नंबर 5
रिस्पॉन्स टाइम, प्लान का अभाव: हादसे के तत्काल बाद किसी को लीड लेकर काम शुरू कर देना था। लेकिन कोई आला अफसर लीड ही नहीं कर रहा था। जिन्हें जो समझ आ रहा था, वह करने लगा। कोई बुनियादी प्लानिंग नहीं थी। ऐसा लगा कि आपदा की स्थिति में जो ट्रेनिंग अफसरों को होनी चाहिए, वह उन्हें दी ही नहीं। लापता लोगों की जानकारी के लिए कंट्रोल रूम तक रात को बना। जबकि यह तो शुरुआती स्तर पर ही हो जाना था।                          

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