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आइए, मां नर्मदा की सेवा से जीवन धन्य करें
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम,
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे,
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
मध्य प्रदेश की जीवन रेखा, मोक्षदायिनी मां नर्मदा जी के अवतरण दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। मां नर्मदा जी मात्र नदी ही नहीं हैं, बल्कि कंकर-कंकर में शंकर को प्रकट करने वाली हैं, अपने पावन तट पर आद्य जगतगुरु शंकराचार्य जी को सनातन संस्कृति को दिशा देने वाली रचनाओं की प्रेरणा प्रदान करने वाली हैं, साथ ही अन्नदाताओं को समृद्धि प्रदान करने वाली हैं।
पवित्र नदियों में स्नान से पुण्य फल प्राप्ति की मान्यता है, जबकि मां नर्मदा के दर्शन से ही कहीं ज्यादा पुण्य मिल जाता है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि मां नर्मदा के आंचल की छांव में रहने का अवसर मिला है। कल-कल, छल-छल प्रवाहित अविरल धारा हमें जीवन, समृद्धि और खुशहाली देती है, साथ ही सतत आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी मिलती है। सहायक नदियों को समाहित करती मां नर्मदा आगे बढ़ती हैं और मानों संदेश देती हैं कि हम सभी को साथ लेकर चलें। मां नर्मदा की प्रेरणा से जब हम सृजन के लिए आगे बढ़ते हैं तो समाज का हर वर्ग साथ देने आता है।
मां नर्मदा की हर बूंद की यात्रा देखें, तो एक अद्भुत शक्ति का संचार स्वयं होने लगता है। अमरकंटक में नर्मदा उद्गम कुंड से मां नर्मदा प्रवाहमान होती हैं और विन्ध्य व सतपुड़ा के पहाड़ों, जंगलों को पार करते हुए ओंकारेश्वर से आगे बढ़कर गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी तक जाती हैं। प्रति क्षण पूरी होती लगभग 1,312 किलोमीटर की यह यात्रा लोककल्याण, सतत परिश्रम और समर्पण का संदेश देती है। यह यात्रा कब शुरू हुई, इसका अंदाजा भी लगाना संभव नहीं है। इन बूंदों की अनंत यात्रा ने प्रकृति को, मानव सभ्यता को और मध्य प्रदेश को इतना कुछ दिया है कि उसकी न गणना की जा सकती है, न कल्पना। यह संकल्प जरूर लिया जा सकता है कि हम भी मां नर्मदा की सेवा से अपना जीवन धन्य करें। नर्मदा घाटी में मानव सभ्यता का न केवल विकास हुआ है, बल्कि हमारे वैभवशाली इतिहास को समेटे नगरों ने भी आकार लेते हुए समृद्धि के प्रतिमान स्थापित किए हैं। महिष्मती (महेश्वर), नेमावर, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर, भीमबैठका आदि ऐसे कई प्राचीन नगर हैं, जहां उत्खनन में 2200 वर्ष पुराने प्रमाण मिले हैं। मां नर्मदा की सेवा के लिए कुछ बातों का ध्यान रखा जाए और अनुशासनात्मक जीवन शैली अपना लें, तो काफी बदलाव संभव है। नदी के जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए हम दूषित पदार्थों को नदी तक पहुंचने ही न दें, धार्मिक आस्था के नाम पर कोई भी अनुपयोगी वस्तु नदी में प्रवाहित न करें। यह नदी पहाड़ों और जंगलों में विशाल वृक्षों के जड़ों में संचित जल के माध्यम से पल्लवित हैं, ऐसे में हम अधिक से अधिक पौधारोपण करें, यह सेवा ही मां नर्मदा के प्रति कृतज्ञ होने के लिए पर्याप्त है।
मां नर्मदा वर्ष पर्यंत हमें जीवन देने के लिए ही प्रवाहमय रहती हैं। मां नर्मदा के रौद्र रूप में भी सृजन की अद्भुत संभावना है। आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी द्वारा नर्मदाष्टक की रचना इसका प्रमाण है। कम उम्र में वेदांत और उपनिषद देने वाले आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी जन्म स्थान केरल से चलकर अमरकंटक के रास्ते पवित्र धरा मध्य प्रदेश पहुंचे थे। उन्होंने 16 साल की उम्र में वेदांत दर्शन की व्याख्या कर सहस्त्राधिक रचनाएं दीं। देश के चारों कोनों पर चार पीठों की स्थापना कर देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोया। वैदिक काल से लेकर वर्तमान तक देखें, तो मां नर्मदा के विस्तृत तट पर अनेक ऋषि, मुनि गणों ने विश्व कल्याण की कामना के साथ घोर तपस्या की और अपने तब को फलीभूत भी किया है। मां नर्मदा के पावन तट का एक-एक कण पुण्य प्रताप से ओजस्वी है। आज मां नर्मदा के अवतरण दिवस के पावन अवसर पर हम सभी को मां की संतान के रूप में यह तय करना होगा कि हम जीवनदायिनी, मोक्षदायिनी पवित्र मां नर्मदा की सेवा किस भाव से और किस प्रकार कर सकते हैं। हम सब मिलकर संकल्प लें कि अविरल धारा को सदैव स्वच्छ और प्रवाहमान बनाए रखने में अपना योगदान देंगे।
नर्मदा पुराण के अनुसार माँ नर्मदा को 13 नामों से जाना जाता है। जिनमे शोण , महानदी, मंदाकनी, महापुण्य प्रदा त्रिकुटा, चित्रोपला, विपाशा, बालवाहिनी, महार्णव विपाषा, रेवा, करभा, रुद्रभावा और एक जो हम सभी जानते है नर्मदा।
अनेको पौराणिक ग्रंथो के अनुसार कई बार प्रलय से संसार का अंत हुआ और कई बार भगवान शिव ने संसार को पुनः स्थापित किया लेकिन माँ नर्मदा कभी क्षीण नहीं हुई।हर बार वह संसार की उत्पत्ति में भोलेनाथ के साथ रही और तब श्रृष्टि की पुनः रचना के बाद भोले नाथ ने उन्हें वरदान देते हुए कहा की तुम्हारे दर्शन से पाप रुपी रोगो से मनुष्यो को मुक्ति मिलेगी।तब सभी पापो को नष्ट करने वाली महानदी नर्मदा दक्षिण दिशा की और निकल गई। तब घोर महार्णव में दिखाई देने के कारण माँ महार्णव कहलाई।