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ई एन टी, आई एवं ओरल केयर पर स्वास्थ्य कर्मियों का हुआ उन्मुखीकरण

समुदाय स्तर पर बीमारियों की शीघ्र पहचान एवं उपचार में होगी आसानी


भोपाल । आयुष्मान आरोग्य मंदिर हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर कार्यक्रम अंतर्गत ई एन टी, आई एवं ओरल केयर सेवाओं का प्रशिक्षण सह उन्मुखीकरण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित गया। प्रशिक्षण में नाक , कान एवं गला रोग, नेत्र रोगों एवं ओरल हेल्थ केयर की जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के विषय विशेषज्ञों द्वारा दी गई। दो दिवसीय प्रशिक्षण में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के ईएनटी विभाग, नेत्र रोग विभाग एवं ओरल हेल्थ विभाग के चिकित्सा विशेषज्ञों ने इन बीमारियों के लक्षणों की पहचान, डायग्नोस्टिक, उपचार के बारे में बताया ।
आंखों की देखभाल के लिए 20-20-20 का नियम
प्रशिक्षण में आंखों की बीमारियों के प्रारंभिक लक्षण, क्लिनिकल फीचर्स, प्रबंधन एवं रेफरल के बारे में विस्तार से समझाया गया । इसके साथ ही आंखों की देखभाल के लिए 20-20-20 के नियम को अपनाने की सलाह दी गई। लंबे समय तक कंप्यूटर ,मोबाइल या अन्य डिजिटल स्क्रीन से जुड़े रहने वालों को हर 20 मिनट के बाद 20 सेकंड का ब्रेक देना आवश्यक है । इस दौरान कम से कम 20 फीट तक की दूरी तक थोड़ी के लिए देखना चाहिए। इससे आंखों को पर्याप्त आराम मिल जाता है। 
     प्रशिक्षण में विजन चार्ट के उपयोग के बारे में समझाया गया। 3 मीटर दूर एवं 35 सेंटीमीटर से कम की दूरी पर देखने में समस्या होने पर दृष्टि होने पर चिकित्सक एवं स्वास्थ्यकर्मी की सलाह पर चश्मे का उपयोग किया जाना आवश्यक है। आंखों में परेशानी होने पर लोगों द्वारा बिना चिकित्सक की सलाह के आई ड्रॉप का उपयोग कर लिया जाता है, जो कि आंखो के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। प्रशिक्षण में मोतियाबिंद, रिफ्रैक्टिव एरर, लो विजन, अंधत्व, कंजेक्टिवाइटिस, ग्लूकोमा, आंखों की चोट, ट्रेकोमा के लक्षणों के बारे में जानकारी दी गई । आंखों की देखभाल एवं आंखों के लिए सही खान-पांन के बारे में भी बताया गया। प्रशिक्षण में आई डोनेशन की प्रक्रिया एवं उससे जुड़ी भ्रांतियां के बारे में जानकारी दी गई । 
महीने में एक बार जरूर की जाए मुंह की जांच
प्रशिक्षण में बताया गया कि दिन में दो बार ठीक ढंग से ब्रश करके मुंह की बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है । तंबाखू, सुपारी, खैनी गुटका जैसी चीज़ें न सिर्फ ओरल हाइजीन को खराब करती हैं , वरन मुंह के कैंसर की संभावना को भी बढ़ा देती है । हर व्यक्ति को माह में कम से कम एक बार अपने मुंह की जांच अवश्य करना चाहिए। मुंह की जांच के लिए होठों के अंदर के भाग, गाल की अंदर की त्वचा , तालु तथा जीभ को टोर्च की रोशनी में स्वपरीक्षण करना चाहिए। किसी भी असामान्यता के दिखने पर चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है। 
 कान की सफाई का तरीका सही हो
एम्स के नाक कान गला रोग विभाग के विशेषज्ञों ने बताया कि लोग कई बार कान की सफाई के लिए हेयर पिन , टूथपिक, माचिस की तीली जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जो की कान के नाजुक पर्दे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसी प्रकार कान में तेल या अन्य लिक्विड डालना, लंबे समय तक तेज आवाज को सुनना, चिकित्सक की सलाह के बिना इयर ड्रॉप का उपयोग नुकसानदायक हो सकता है। प्रशिक्षण में नाक से खून बहने, साइनसाइटिस, टॉन्सिलाइटिस इत्यादि बीमारियों के बारे में जानकारी दी गई।
आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में निशुल्क उपलब्ध हैं जांच एवं उपचार की सुविधा
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भोपाल डॉ प्रभाकर तिवारी ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग भोपाल द्वारा आयोजित इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य नाक , कान , गला रोग, नेत्र रोगों एवं मुंह की बीमारियों की समुदाय स्तर पर त्वरित पहचान , प्रबंधन एवं उपचार के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का उन्मुखीकरण करना है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों पर नाक कान गला रोग, नेत्र रोग एवं ओरल हेल्थ से संबंधित रोगों के परीक्षण एवं उपचार की सुविधा निशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही है।

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