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सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय में मनोदैहिक विकार पर सेमिनार आयोजित

भोपाल । सरोजिनी नायडू शासकीय कन्या स्नातकोत्तर (स्वशासी) महाविद्यालय में एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन भारतीय संदर्भ में मनोदैहिक विकार एवं समग्र कल्याण”विषय पर किया गया। सेमिनार का शुभारंभ उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के द्वारा किया गया। उच्च शिक्षामंत्री ने अपनी भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को समझने और आत्मसात करने पर जोर दिया।मंत्री जी ने आज के इस तनावपूर्ण जीवन‌ में भारतीय मनोविज्ञान के प्रभावकारी उपचारों को अपनाने पर बल दिया। 

       कार्यक्रम के आरंभ में महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ शैलबाला सिंह बघेल ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पौधा भेंट कर किया और स्वागत उद्बोधन दिया जिसमें सेमीनार के विषय की प्रासंगिकता एवं समसामयिकता से परिचित कराया। डॉ बघेल ने कहा कि आज के समय में जो शारीरिक विकारों में वृद्धि होती जा रही है उनमें से अधिकांश के पीछे कोई न कोई मानसिक द्वंद्व या भावनात्मक विक्षुब्धता होती है। उन्होंने आगे कहा कि आज के सेमीनार का आयोजन इसी विषय की विवेचना एवं समीक्षा करने के लिए किया गया है। 
      चार सत्रों में आयोजित इस पूर्ण दिवसीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एवं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ राकेश कुमार त्रिपाठी ने अपना व्याख्यान दिया । डॉ त्रिपाठी का मुख्य वक्तव्य अत्यंत सारगर्भित एवं औज पूर्ण था उन्होंने मनोदैहिक विकारों की जटिलताओं से अवगत कराया एवं जीवन के समग्र कल्याण हेतु भारतीय ज्ञान पृष्ठ भूमि को जानने, समझने एवं जीवन में उतारने के महत्व को प्रकासित किया और बताया कि मानसिक विकार जब शारीरिक रोगों के रूप में प्रकट होते है तो इन्हें मनोदैहिक विकार कहा जाता है। सेमिनार के दूसरे सत्र के विषय विशेषज्ञ डॉ ज्ञानेश कुमार तिवारी ने मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के साथ चुनौतियों का भी जिक्र किया और किस प्रकार हम सकारात्मक मनोवैज्ञानिक तकनीकों के द्वारा इन अवरोधों एवं चुनितियों से निपट सकते है, इसके समाधान भी उपस्थित श्रोताओं को सुझाए। डॉ तिवारी ने बताया कि ऊंचे आत्म-सम्मान, स्वयं तथा दूसरों के प्रति क्षमा भाव, प्रार्थना, गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली एवं कार्यनिष्ठा आदि सकारात्मक मनोवैज्ञानिक माध्यमों से हम अपने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं और सुधार भी सकते हैं। तीसरे सत्र की विषय विशेषज्ञ डॉ एस. बी. गीता नरहरी ने मनोदैहिक विकारों से पूर्ण आज के वातारण में कैसे हम अपने मन को स्वस्थ एवं सतुलित रख सकते है इस आशय से विभिन्न मनोवैज्ञानिक सुरक्षा उपायों की चर्चा की तथा अंतिम सत्र की विषय विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक, डा ज्योत्सना जैन ने मनोदैहिक विकारों के उन लक्षणों पर प्रकाश डाला जिनका कोई दैहिक चिकित्सकीय प्रमाण नहीं मिलता लेकिन जीवन में उनका दुष्प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। ऐसे लक्षणों के मनोवैज्ञानिक निदान एवं निवारण के मार्ग को डॉ जैन द्वारा बखूबी समझाया गया। 
 सेमीनार के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में गिरीबाला सिंह बघेल, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, सम्मिलित हुईं। श्रीमती बघेल ने मनोदैहिक विकारों के पीछे हमारे नकारात्मक चिंतन , लो सेल्फ-स्टीम, अपराध बोध ग्रंथी, अहंकार एवं अस्त-व्यस्त जीवन शैली को बताया।
        कार्यक्रम का शुभारंभ मां की सरस्वती वंदना एवं दीप प्रज्वलन के द्वारा किया गया। मंच संचालन डॉ सीमा पाठक ने किया। मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष एवं सेमीनार संयोजक संतोष रलावनिया ने उपस्थित प्रतिभागियों के को मुख्य वक्ता का परिचय कराया। डॉ आरती श्रीवास्तव, डॉ लक्ष्मी अग्निहोत्री एवं डॉ साधना कम्ठान ने अलग-अलग सत्रों में आए हुए विषय विशेषज्ञों का परिचय कराया। डॉ इंदिरा जावेद, डॉ सोनल सिंघवी, डॉ श्रद्धा दुबे और डॉ रज़ी फ़राज़ खान ने अलग-अलग सत्रों में दिए गए व्याख्यान का सारांश प्रत्येक सत्र के अंत में प्रस्तुत किया।
 कार्यक्रम के समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में, डॉ मथुरा प्रसाद, अतिरिक्त संचालक, भोपाल संभाग और सम्माननीय अतिथि के रूप में डॉ धीरेंद्र शुक्ल, विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी, उच्च शिक्षा, म.प्र. सम्मिलित हुए। महाविद्यालय की आईक्यूएसी सेल के समन्वयक डॉ मुकेश दीक्षित ने पौधा भेंट कर विशिष्ट अतिथि का स्वागत किया। सेमीनार में पधारे सभी गणमान्य अतिथियों एवं विषय विशेषज्ञों को प्राचार्य डॉ बघेल द्वारा स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।

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