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24 से 27 तक मध्य प्रदेश प्रवास पर श्री श्री रविशंकर

जबलपुर और इंदौर में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन

देश के 5 राज्यों से भक्त दर्शनार्थ आयेंगे
 भोपाल। 180 से भी अधिक देशों में मानव विकास के साथ ही आध्यात्मिक विकास में लगी हुई संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता और संस्थापक आध्यात्मिक गुरु पद्म विभूषित परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी 24 से 27 मार्च तक मध्य प्रदेश प्रवास पर रहेंगे। इस दौरान वे जबलपुर और इंदौर शहर आएंगे। गुरुदेव के मध्य प्रदेश प्रवास का शुभारंभ संस्कारधानी जबलपुर से 24 मार्च को होगा। श्रीश्री की अनुकंपा से 5 वर्ष बाद उनका पुन: शहर आगमन सुनिश्चित हुआ है। चैत्र मास की पावन बेला में शहर में श्रीश्री सर्वप्रथम लम्हेटाघाट, गोपालपुर के समीप सुबह 8 बजे नर्मदेश्वर शिव की प्राण प्रतिष्ठा करेंगें। इस कार्यक्रम के पश्चात शाम 5 बजे गुरुदेव तिलवारा स्थित, होटल शॉन एलिजे में ज्ञान के मोती कार्यक्रम में शामिल होंगे। जबलपुर में कार्यक्रमों में के बाद गुरुदेव का 25 मार्च को इंदौर आगमन होगा। गुरुदेव के सानिध्य में 25 मार्च को इंदौर के पित्रेश्वर पर्वत हनुमान धाम मंदिर, गांधीनगर में 51 हजार भक्तों के साथ श्री हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन किया जाएगा। हनुमान चालीसा के इस आयोजन में शहर के सभी लोग शामिल हो सकते हैं। इसके उपरांत 26 मार्च को सुबह 10 बजे से 7 बजे तक विज्ञान भैरव कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। जिसमें गुरुदेव द्वारा भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को बताई गई ध्यान की 112 विशेष गूढ़ तकनीकों का ज्ञान और ध्यान का अनुभव साधकों को कराया जाएगा। इस आयोजन में पूर्व पंजीकरण से प्रवेश है। इसके उपरांत 27 मार्च को सुबह 6:30 से योग मित्र कार्यक्रम के अंतर्गत महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव जी के साथ में गुरुदेव के सानिध्य में विजय क्रिकेट क्लब दशहरा मैदान पर योग का आयोजन किया गया है। इस आयोजन के तुरंत बाद गुरुदेव विशाल महारुद्र पूजा में शामिल होंगे।
  
 
कौन हैं श्री श्री
भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में शांतिदूत के रूप में प्रसिद्ध पद्मविभूषित श्रीश्री रविशंकर एक परोपकारी नेता, आध्यात्मिक शिक्षक और वास्तव में शांति के दूत हैं। 13 मई 1956 को तमिलनाडू में जन्मे श्रीश्री महज चार साल की उम्र में न सिर्फ श्रीमद्भागवत के कुछ श्लोक बोल रहे थे बल्कि बालसुलभ शरारतों के साथ ही तभी से ही संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित करने के विषय में चिंतन करने लगे थे। श्रीश्री ने 1973 में महज सत्रह साल की उम्र में वैदिक साहित्य और भौतिकी दोनों विषयों में स्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी। एक तनाव एवं हिंसा मुक्त समाज के निर्माण की परिकल्पना को उन्होंने 1982 को आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना कर साकार करना प्रारंभ किया। उनकी दृष्टि ने आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा प्रस्तुत की गयी सेवा परियोजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से दुनिया भर के लाखों लोगों को एकजुट किया। श्रीश्री ने आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय, गैर-लाभकारी, शैक्षिक और मानवीय संगठन के रूप में की। इसके शैक्षिक और आत्म-विकास के कार्यक्रम, तनाव को खत्म करने और स्वास्थ्य प्राप्ति की भावना को बढ़ावा देने के लिए शक्तिशाली विधियाँ प्रदान करते हैं। 1997 को श्रीश्री ने इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यु की स्थापना लोगों को वैश्विक स्तर पर आपस में जोडऩे वाले मूल्यों को फैलाने के उद्देश्य से की। आईएएचवी स्थायी विकास परियोजनाओं के समन्वय के साथ ही मानवीय मूल्यों का पोषण करता है और संघर्ष के समाधान की पहल करता है।
श्रीश्री के कार्यक्रमों ने विश्वभर में अनेक प्रकार की पृष्ठभूमि के लोगों को सहायता प्रदान की। प्राकृतिक आपदाओं के शिकार, आतंकी हमलों और युद्ध से बचे लोग, अधिकारविहीन आबादी के बच्चे, संघर्षरत समुदाय आदि उनमें से हैं। उनके संदेश की शक्ति ने स्वयंसेवकों के एक विशाल समूह के माध्यम से आध्यात्मिकता पर आधारित सेवा की लहर को प्रेरित किया है, जो इन परियोजनाओं को दुनिया भर के संकटमय क्षेत्रों में आगे बढ़ा रहे हैं। एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में, श्रीश्री ने योग और ध्यान की परंपराओं को फिर से जीवंत किया और उन्हें एक ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जो 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक है। प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करने के अलावा, गुरुदेव ने व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन के लिए नई विधियों का निर्माण किया है। इनमें सुदर्शन क्रिया शामिल है जिसने लाखों लोगों को तनाव से राहत पाने और दैनिक जीवन में ऊर्जा के आंतरिक भंडार और आंतरिक मौन की खोज करने में मदद की है।
 
शांति के दूत के रूप में, गुरुदेव ने दुनिया भर में संघर्ष समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वे विश्व भर में सार्वजनिक मंचों और सभाओं में अहिंसा के प्रति अपने दृष्टिकोण को साझा करते हैं। शांति प्रसार के एकमात्र लक्ष्य के साथ उन्हें एक तटस्थ व्यक्ति के रूप में माना जाता है, वह संघर्षरत लोगों के जीवन में आशा जगाते हैं। उन्होंने कोलंबिया, इराक, आइवरी कोस्ट, कश्मीर और बिहार में विरोधी दलों को वार्ता की मेज पर लाने का विशेष श्रेय प्राप्त किया है। फिर चाहे 2001 में वल्र्ड ट्रेड ऑर्गनाईजेशन पर हमले के बाद न्यूयार्क के लोगों को तनाव दूर करने नि:शुल्क कोर्स कराना हो, 2003 में ईराक में युद्ध प्रभावित लोगों को तनाव मुक्ति के उपाय बताना हो, शिया, सुन्नी और कुरदिश नेताओं से चर्चा की बात हो या फिर 2004 में पाकिस्तान के उन नेताओं के मुलाकात करना हो जो विश्वशांति के पक्षधर थे, श्रीश्री शांति के लिए हर मोर्चे पर डटे रहे। दुनिया भर के कैदियों के उत्थान के लिए भी श्रीश्री की प्रेरणा से संस्था के लोग विश्व भर में प्रयासरत हैं। अपने प्रयासों और भाषणों के माध्यम से, गुरुदेव ने मानवीय मूल्यों को मजबूत करने और इसे पहचानने की आवश्यकता पर लगातार जोर दिया कि हम सभी एक विश्व परिवार से हैं। विभिन्न विश्वासों के मध्य सद्भाव को बढ़ावा देना और कट्टरता को दूर करने के लिए बहु-सांस्कृतिक शिक्षा का उपाय करना, स्थायी शांति प्राप्त करने के उनके प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गुरुदेव ने मानवीय मूल्यों और सेवा के पुर्नजागरण के माध्यम से दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को स्पर्श किया है। जाति, राष्ट्रीयता और धर्म से परे जाकर, गुरुदेव ने एक विश्व परिवार के संदेश को फिर से प्रकाशित किया है, जो तनाव और हिंसा से मुक्त है।
 
शांति निर्माण और संघर्ष का समाधान 
दुनिया के कोने-कोने में शांति लाना हम सबकी जिम्मेदारी है। जब तक हमारे वैश्विक परिवार का प्रत्येक सदस्य शांतिपूर्ण नहीं है, तब तक हमारी शांति अधूरी है। यह प्रेरक उद्बोधन देने वाले श्रीश्री ने हिंसा रहित विश्व के निर्माण में अपूर्व योगदान दिया। वे सबसे असंभावित जगहों पर भी शांति का संदेश पहुँचाने का प्रयास करते रहे। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि हिंसा मुक्त विश्व की उनकी कल्पना एक वास्तविकता है। कोलंबिया में शांति के लिए श्रीश्री ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ५३ वर्ष पुराने संघर्ष को समाप्त कर वे २०१५ में एपएआरसी के नेताओं को वार्ता की मेज पर लाने में सफल रहे। अंतत: एकतरफा युद्धविराम की घोषणा करने के लिए सभी राजी हो गए। श्रीश्री के मार्गदर्शन में आर्ट ऑफ लिविंग अब भी बगदाद में पुनर्वास में लगी हुई है। संस्था ने अब तक ५० हजार से अधिक लोगों को लाभान्वित किया है। श्रीश्री ने स्वयं नवंबर २०१४ को तीसरी बार इराका का दोरान किया और शांति सम्मेलन को संबोधित कर राहत शिविरों का दौरा भी किया। संगठन ने सक्रिय रूप से जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और इराक में सीरियाई शरणार्थियों और युद्ध से बचे लोगों की सेवार्थ कार्य किया। विश्व के आपदा ग्रस्त देशों के साथ श्रीश्री ने कश्मीर में भी संवाद का निर्माण किया। २००४ से जम्मू ओर कश्मीर में समाज के सभी वर्गों के साथ जुड़े रहे और एक दशक से अधिक समय से लगातार और निरंतर संवाद में हैं। २००७ में संस्था द्वारा आयोजित शेर-ए-कश्मीर में अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में सैयाद अली शाह गिलानी ने श्रीश्री का स्वागत किया। २०१६ में बैक टू पैराडाइज कॉन्फ्रेंस हो या फिर मीरवाइज उमर फारुक सहित हुॢरयत नेताओं के साथ बैठक, श्रीश्री ने घाटी में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए हर संभव प्रयास किए। सशस्त्र उग्रवाद के जाल में फंसे ५ हजार से अधिक लोगों को हिंसा का रास्ता छोडऩे प्रेरित करने की मुहिम हो या फिर २७ शैक्षणिक संस्थानों के पुननिर्माण की पेशकश, श्रीश्री ने अपने स्तर पर हर संभव प्रयास किए। कश्मीर के अलावा श्रीश्री ने मणिपुर में भी ६८ उग्रवादियों की घर वापसी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनेक उग्रवादी संगठनों से जुड़े लोगों की घर वापसी के लिए शिविरों के साथ ही श्रीश्री ने वर्ष 2013 में उल्फा के 231 सदस्यों के लिए एक विशेष सशक्तिकरण कार्यक्रमा का आयोजन भी किया। गुवाहाटी में ६७ विभिन्न संगठनों के नेता जिनमें पूर्व में हथियार उठाने वाले भी शामिल थे उनके लिए विविधता में शक्ति कार्यक्रम का आयोजन किया। यह नार्थ ईस्ट में शांति की एक अभिनव पहल थी। श्रीश्री के निरंतर हस्तक्षेप से प्रोत्साहित यूपीएलए ने अंतत: २ अक्टूबर २०१८ गांधी जयंती पर आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम में संघर्ष विराम की घोषणा की। श्रीश्री के शांति एवं पुनर्वास के प्रयासों में पैगाम-ए-मोहब्बत (2017-18), एफएआरसी व कोलंबिया में मध्यस्थता (2016), गुर्जर समुदाय के साथ मध्यस्थता (2008), दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय तनाव के दौरान हस्तक्षेप (2008), जातीय-राजनीतिक संघर्ष, रूस (2008), श्रीलंकाई संघर्ष (2005), इराक संघर्ष (2014), कोटे डी आइवर (आइवरी कोस्ट) (2007), कश्मीर (2003 से जारी) है। श्रीश्री ने युद्ध क्षेत्रों में आघात देखभाल एवं पुनर्वास के कार्य लेबनान, जॉर्डन, सीरिया (2015-17), इराक (2003 से), रूस (2008), लेबनान-इजऱाइल के बीच (2006), श्रीलंका (2004 से), इजऱाइल (2003), कोसोवो (2000), अफगानिस्तान (2003) ) से किए। 
 
 

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