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सुभाषचंद्र बोस और तथाकथित हिंदूवादी
यह जानना जरूरी है कि हिन्दू महासभा के विनायक सावरकर ने अंग्रेजों की मदद के लिए फ़ौज बनाने में मदद की थी। जब नेताजी ने बर्मा (आज का म्यांमार) को पार करते हुए भारत के पश्चिमोत्तर में हमला किया था तो उन्हें रोकने के लिए अंग्रेज़ों ने उसी फ़ौज को आगे किया था, जो सावरकर की मदद से खड़ी की गई थी।
इसका असल कारण था कि सुभाष बाबू साम्प्रदायिक दलों के घोर विरोधी थे। सुभाष बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस ने 16 दिसम्बर 1938 को एक प्रस्ताव पास किया जिसमें कांग्रेस के सदस्यों को हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के सदस्य होने पर रोक लगा दी गयी थी। जबकि इसके पहले हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के सदस्य कांग्रेस के मेंबर रह सकते थे । सुभाष बाबू ने दोहरी सदस्यता का यह झमेला खत्म कर दिया । इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि सुभाष बाबू हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ थे ।
जनसंघ के संस्थापक और उस दौर के हिन्दू महा सभाई बलराज मधौक अपनी आत्मकथा में लिखते हैं–
“सुभाष चन्द्र बोस, ने हिन्दू महासभा की सभी जन सभाओं में व्यवधान डालने की अपने समर्थकों की सहायता से योजना बनाई। उन्होंने कहा कि उनके समर्थक महासभा की सभाएं नहीं होने देंगे और महासभा को सभा नहीं करने देंगे और ज़रूरत पड़ी तो पीटेंगे भी। डॉ मुखर्जी इसे सहन नहीं कर पाए और उन्होंने एक सभा का आयोजन किया जिसमे उन्हें भाषण देना था। जैसे ही डॉ मुखर्जी सभा मे भाषण देने के लिये खड़े हुए तभी एक पत्थर उन्हें भीड़ से आ लगा और उनके माथे से खून निकलने लगा। “
आज स्पष्ट करना होगा कि आप हिन्दू महा सभा के साथ किस तरह आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे।
हिन्दू महासभा के संस्थापक विनायक दामोदर सावरकर ने ख़ुद श्यामा प्रसाद मुखर्जी के फ़जलुल हक़ सरकार में शामिल होने पर गर्व जताया था और इसे हिन्दू महासभा की कामयाबी के तौर पर पेश किया था। सावरकर ने 1942 में कानपुर में हुए हिन्दू महासभा के 24वें सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था :
‘बंगाल का मामला मशहूर है। मुसलिम लीग के लोग, जिन्हें कांग्रेस भी अपनी विनयशीलता से नहीं समझा सकी थी, हिन्दू महासभा के संपर्क में आने के बाद समझौता करने को राज़ी हो गए, फ़जुलल हक़ के प्रीमियरशिप में बनी और महासभा के हमारे नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कुशल नेतृत्व में चलने वाली साझा सरकार लगभग एक साल तक सफलतापूर्वक काम करती रही और इससे दोनों ही समुदायों को फ़ायदा हुआ।’
आन्दोलन कुचलने की सिफ़ारिश
हिन्दू महासभा तो भारत छोड़ो आन्दोलन के ख़िलाफ़ था ही, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक ख़त लिख कर अंग्रेज़ों से कहा कि कांग्रेस की अगुआई में चलने वाले इस आन्दोलन को सख़्ती से कुचला जाना चाहिए। मुखर्जी ने 26 जुलाई, 1942 को बंगाल के गवर्नर सर जॉन आर्थर हरबर्ट को लिखी चिट्ठी में कहा, ‘कांग्रेस द्वारा बड़े पैमाने पर छेड़े गए आन्दोलन के फलस्वरूप प्रांत में जो स्थिति उत्पन्न हो सकती है, उसकी ओर मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं।’
अंग्रेज़ गवर्नर को लिखी चिट्ठी में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लिखा :
“’किसी भी सरकार को ऐसे लोगों को कुचलना चाहिए जो युद्ध के समय लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम करते हों, जिससे गड़बड़ी या आंतरिक असुरक्षा की स्थिति पैदा होती है।’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मंत्री, बंगाल सरकार, 26 जुलाई, 1942
इतना ही नहीं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के गवर्नर को लिखी उस चिट्ठी में भारत छोड़ो आन्दोलन को सख़्ती से कुचलने की बात कही और इसके लिए कुछ ज़रूरी सुझाव भी दिए। उन्होंने इसी ख़त में लिखा :
“ ‘सवाल यह है कि बंगाल में भारत छोड़ो आन्दोलन को कैसे रोका जाए। प्रशासन को इस तरह काम करना चाहिए कि कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद यह आन्दोलन प्रांत में अपनी जड़ें न जमा सके। सभी मंत्री लोगों से यह कहें कि कांग्रेस ने जिस आज़ादी के लिए आन्दोलन शुरू किया है, वह लोगों को पहले से ही हासिल है।’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मंत्री, बंगाल सरकार, 26 जुलाई, 1942
राष्ट्रपिता की मंशा
और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विचार
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“आज़ाद भारत कोई हिन्दू राज नहीं होगा , यह भारतीय राज होगा जो किसी धार्मिक पंथ या समुदाय के बहुमत पर आधारित नहीं होगा बल्कि धर्म के किसी भेद के बिना समूची जनता के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा ।. ..धर्म एक निजी मामला है ।जिसकी राजनीति में कोई जगह नहीं होनी चाहिए “
– महात्मा गाँधी ( हरिजन 09 अगस्त 1942 )
“भारत में किसी भी राष्ट्रीयता को होने वाली तकलीफ को अपनी तकलीफ समझो, उसकी शान को अपनी शान ।…भगवान जगन्नाथ का मंदिर और ताज महल मेरे लिए समान गर्व की चीजें हैं ।” -नेताजी सुभाषचन्द्र बोस(1926, मांडले जेल से )