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सुप्रीम कोर्ट ने बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते को कानूनन वैध माना

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने अब ‎बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते को कानूनन वैध माना है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि अंतर्निहित अनुबंध पर संबंधित स्टांप अधिनियम के अनुसार मुहर नहीं लगाई गई है तो मध्यस्थता समझौता शुरू से ही अमान्य या शून्य होगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत निर्णय में कहा कि गैर-स्टांपिंग या अपर्याप्त स्टांप किसी समझौते को शून्य नहीं बनाता है, बल्कि इसे साक्ष्य में अस्वीकार्य बनाता है। संविधान पीठ ने यह भी माना कि किसी समझौते पर स्टांप न लगाना या अपर्याप्त स्टांप भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत एक ठीक किये जाने योग्य दोष है। इसमें कहा गया है कि प्री-रेफ़रल चरण में मध्यस्थता समझौते पर मोहर लगाने के मुद्दे को निर्धारित करने के लिए अदालतों को बाध्य करना मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के उद्देश्यों को विफल कर देगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अलग सहमति वाली राय में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि मध्यस्थता समझौते पर अपर्याप्त या मुहर न लगने से यह अमान्य नहीं हो जाएगा।

गौरतलब है ‎कि इस साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनएन ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड और अन्य के मामले में दिए गए फैसले के व्यापक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे को सात-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने पर सहमत हुआ था।
उस मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3:2 के अनुपात से यह व्यवस्था दी थी कि गैर-मुद्रांकित या अपर्याप्त-मुद्रांकित मध्यस्थता समझौते कानून की नजर में लागू करने योग्य नहीं हैं। वहीं दो न्यायाधीशों ने अपने अलग-अलग अल्पमत निर्णयों में राय दी थी कि स्टाम्प की कमी को ठीक किया जा सकता है और बिना स्टाम्प वाले मध्यस्थता समझौते प्री-रेफ़रल चरण में मान्य हो सकते हैं।

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