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हुकमचंद मिल मजदूरों का मामला : 529 करोड़ की है कीमत आंकलन, बिकनेे पर मिलेगा मजदूरों को पैसा

इंदौर । जिले का सबसे अच्छा माना जाने वाला हुकमचंद मिल 12 दिसंबर 1991 को अचानक बंद हो गया था। तब छह हजार मजदूर मिल में काम करते थे। बेेरोजगार हो चुके कई मजदूरों ने आत्महत्या कर ली, जो जिंदा बचे है। वे अपने हक के लिए लड़ रहे है।

32 साल पहले बंद हुए हुकमचंद मिल के मजदूर आज भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे है और उन्होंने हाईकोर्ट में इसके लिए याचिका भी लगा रखी है। सोमवार को हुई सुनवाई में परिसमापक ने जमीन की मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की। मूल्याकंन दो वेल्यूअरों ने किया है। एक ने 513 करोड़ तो दूसरे ने 529 करोड़ रुपये जमीन की कीमत आंकी है।
हुकमचंद मिल की 42 एकड़ जमीन की बाजार मूल्य 500 करोड़ रुपये तय हो गया है और अब इसकी बिक्री का रास्ता भी खुल गया हैै। जमीन बिकने पर मजदूरों को भी पैसा मिलेगा और जिन बैंकों का मिल पर बकाया है, उनका भी भुगतान किया जाएगा।
मंगलवार को हुकमचंद मिल की सुनवाई थी। परिसमापक ने जमीन की मूल्यांकन रिपोर्ट हाई कोर्ट में प्रस्तुत कर दी। इसमें कहा है कि दो मूल्यांकनकर्ताओं से जमीन का मूल्यांकन करवाया गया था। एक ने जमीन का बाजार मूल्य 513 करोड़ रुपये बताया है जबकि दूसरे ने 529 करोड़ रुपये कीमत आंकी है। कोर्ट में नगर निगम की तरफ से भ एक पत्र प्रस्तुत हुआ। इसमें कहा है कि मिल की जमीन और मजदूरों के भुगतान को लेकर उसने शासन को प्रस्ताव भेजा है। जवाब आने में दो-तीन महीने लग सकते हैं। इस मामले में मामले में अब 14 मार्च को सुनवाई होगी।
दो हजार से ज्यादा मजदूरों की मौत, कई कर चुके है आत्महत्या
इंदौर का सबसे अच्छा माना जाने वाला हुकमचंद मिल 12 दिसंबर 1991 को अचानक बंद हो गया था। तब छह हजार मजदूर मिल में काम करते थे। बेेरोजगार हो चुके कई मजदूरों ने आत्महत्या कर ली, जो जिंदा थे, वे अपने हक के लिए लड़े, लेकिन 32 सालो में 2200 मजदूरों की मौत हो चुकी है। बाद में श्रमिकों ने कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2017 में 50 करोड़ रुपये सरकार ने दिए है। हाई कोर्ट ने परिसमापक को आदेश दिया था कि वे मिल की जमीन का बाजार मूल्य पता करें ताकि इसे नीलाम किया जा सके। परिसमापक ने मंगलवार को मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।अब मिल की जमीन बेचकर ही इन मजदूरों का बकाया भुगतान होना है।
सरकार बदल चुकी है लैंडयूज
मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश, हरनामसिंह धालीवाल ने बताया कि छह साल पहले भी जमीन को बेचने के लिए टेंडर जारी हुए थे। तब इसकी कीमत 385 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन जमीन का लैंडयूज उद्योग था। चार साल पहले सरकार ने जमीन का लैंड यूज आवासीय व कर्मशियल कर दिया। उधर नगर निगम ने भी मिल की जमीन को लेकर एक योजना बनाई है। निगम की ओर से मंगलवार को कोर्ट में एक पत्र प्रस्तुत किया गया। जिमसें कहा गया कि प्रस्ताव शासन को भेजा है। अब तक इसका जवाब नहीं आया है। इसमें दो-तीन माह लगेंगे।

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