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जिंदा टाइगर’ की ललकार से अलग शिवराज की ये उक्तियां…

अजय बोकिल, वरिष्ठ संपादक राइट क्लिक 
      मशहूर शायर बशीर बद्र का शेर है ‘ मैं बोलता हूं तो इल्जाम है बगावत का, मैं चुप रहूं तो बड़ी बेबसी सी होती है।‘ हाल में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की बंपर जीत के बाद भी मुख्यमंत्री पद से दरकिनार कर दिए गए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मनस्थिति आजकल कुछ ऐसी ही कभी वो रामायण के प्रसंग की तुलना परोक्ष रूप में खुद से करते हुए कहते हैं कि कभी-कभी राजतिलक होते-होते वनवास हो जाता है तो कभी सीएम पद से विदाई लेते समय यह कहते हैं कि आज मेरे मन में संतोष का भाव है। कभी वह फूट-फूट कर रोती बहनो को भावुक अंदाज में भरोसा दिलाते हैं कि मैं कहीं नहीं जा रहा तो दूसरी तरफ धीरे से उस दक्षिण दिशा की अोर कूच कर देते हैं, जहां उन्हें पार्टी ने कोई नई जिम्मेदारी दी बताई जाती है।
शिवराज की ये उक्तियां पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की मामूली अंतर से हुई हार के बाद ‘टाइगर अभी जिंदा है’ की ललकार से काफी अलग है। तब भाजपा कार्यकर्ताअों का मनोबल कायम रखने के मकसद से यह बयान उन्होंने दिसंबर 2018 में दिया था तो दिसंबर 2023 में भाजपा को उन्हीं की सीएम रहते भरपूर बहुमत दिलाने के अघोषित दावे के बाद भी शिवराज यह कहते दिखे कि अगर सीएम पद से हटे तो होर्डिंग्स से फोटो भी गायब हो जाते हैं। हाय री निष्ठुर सियासत और इसमें उतराने वाले बेरहम राजनेता।
दरअसल शिवराज की यह बोधकथा राजनीति में जीने मरने वाले हर उस शख्स की कहानी है, जो सत्ता में रहते हुए अपने आप को सर्वेसर्वा समझता है और सत्ता से बेदखल होते ही पुराने नंबर के चश्मे से अपनी ही जमीन तलाशने लगता है। और फिर भाजपा में तो यह होता ही रहता है। कभी लालकृष्ण आडवाणी भाजपा और संघ की आंखों के सितारे हुआ करते थे। आज आलम यह है कि वो जीवन के दसवें दशक में शून्य में निहारते कभी कभार वो जन्म दिन की बधाई लेते दिख जाते हैं। जिस राम मंदिर मुद्दे को उन्होंने बड़ी शिद्दत और तार्किकता के साथ राजनीतिक मुद्दे में भुनाया और इसी लहर पर सवार होकर उन्होंने भाजपा को दिल्ली के तख्त पर बिठाया, उन्हीं आडवाणी को उनकी सेहत की याद दिलाते हुए राम मंिदर उद्घाटन के दूर से दर्शन करने की नेक सलाह दी गई है। संदेश यह कि उम्र दराज व्यक्ति के लिए सेहत से बढ़कर कोई चीज नहीं होती।
जहां तक शिवराज की बात है तो उन्होंने रामायण में राम के राजतिलक समारोह के 14 साल के वनवास में बदलने के रूपक का जिक्र शायद इसलिए ‍िकया क्योंकि ये जीवन विडंबनाअों और विरोधाभासों से भरा हुआ है। पानी पर लिखी यह कहानी कब मिट जाए और नया आकार ग्रहण कर ले, कोई नहीं जानता। भगवान राम को तो उनके राजतिलक से ठीक पहले पिता के आदेश पर वनवास में जाना पड़ा, लेकिन शिवराज तो लगभग 18 साल तक ‍मुख्यमंत्री के सिंहासन पर विराजमान रहे हैं। ऐसे में लंबे सत्ता सुख के बाद राजनीतिक ‘वनवास’ मिले तो वह और ज्यादा पीड़ादायी और बेबसी भरा होता है। यह कुछ वैसा ही है कि लंका विजय के बाद अयोध्या का राज राम के बजाए शत्रुघ्न को मिल जाए। हालांकि भाजपा ने शिवराज को पूरी तरह वनवास नहीं दिया है। आखिर ‘वन’ में पौधरोपण भी एक बड़ी जिम्मेदारी है।
बहरहाल बीते सवा माह में शिवराजसिंह चौहान के बयानों और उनसे झरती टीस पर गौर करें। हाल में मप्र में हुए विधानसभा चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी को मात ‍देकर भाजपा का 163 सीटें जीतकर सत्ता में लौटना अपने आप में उपलब्धि से कम नहीं था। लेकिन इसकी व्याख्या ‘मोदी के चमत्कार’ के रूप में की गई। नई ताजपोशी के कार्यक्रम में 12 दिसंबर को पार्टी के सुधिजनो के बीच राज्य के नए मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव के नाम की घोषणा करते वक्त शिवराज ने कहा कि आज मेरे मन में संतोष का भाव है। लाखों कार्यकर्ताओं और पीएम मोदी के आशीर्वाद और केन्द्र और राज्य की कल्याणकारी योजनाओं के कारण जिसमें लाडली बहना का भी योगदान जबरदस्त है। प्रदेश की नई सरकार को मैं हमेशा सहयोग करता रहूंगा।‘
इसके बाद वो अपने पुराने चुनाव क्षेत्र विदिशा चले गए। वहां उन्हें समर्थकों ने घेर लिया, जिनमें महिलाएं भी बड़ी तादाद में थीं। वो शिवराज भैया से गुहार कर रही थीं कि वो फिर से सूबे की बागडोर संभालें। समर्थकों के इस प्यार से अभिभूत शिवराज ने भावुक अंदाज में कहा कि ‘मैं कहीं नहीं जा रहा हूं। मैं मध्य प्रदेश में ही हूं।‘ लेकिन इसी बीच यह खबर उड़ी कि आला कमान ने उन्हें दिल्ली बुलाकर दक्षिणी राज्यों में भाजपा को मजबूत करने की महती और राष्ट्रीय जिम्मेदारी दी है। इसी दौरान राज्य में नई यादव सरकार ने अपने आदेश में राज्य में तयशुदा सीमा से ज्यादा शोर वाले लाउडस्पीकर और डीजे पर रोक लगा दी। इससे परेशान बैंड और डीजे वाले शिवराज के नए घर जा पहुंचे। शिवराजजी ने उन्हें यकीन दिलाया कि वो बेखौफ बैंड बाजे और डीजे बजाएं। मैं देखता हूं कि कौन रोकता है। इस ललकार के बाद नए मुख्यमंत्री यादव शिवराज के घर जा पहुंचे। इसी दौरान शिवराज मुख्‍यमंत्री निवास खालीकर सपरिवार अपने 73 बंगले स्थित नए आवास में शिफ्ट हुए। बंगले का नया नामकरण हुआ- ‘मामा का घर।‘ वैसे मप्र में किसी सरकारी बंगले का इस तरह अलग से और मानवीय नामकरण का यह पहला ही मौका था। अमूमन यहां बंगले उनके शुष्क नंबरों या फिर उनमें रहने वाली हस्तियों के नामों से जाने जाते हैं। लेकिन शिवराज की इस पहल से उन तमाम मामाअोंका मनोबल ऊंचा हुआ, जो द्वापर युग में मामा कंस और शकुनि मामा जैसे नकारात्मक चरित्रों के कारण मन ही मन ग्लानि महसूस करते रहे हैं। शिवराज ने घोषित रूप से कहा कि उनके लिए ‘मामा का पद’ सर्वोपरि है। इसे कोई छीन नहीं सकता। यह कालजयी रिश्ता है, जो किसी आला कमान या हस्तिनापुर से बंधा नहीं है। यह बात अलग है कि आशियाने के इस अंतरण में इलाके का एक बंगला ही खेत रहा। आसपास बने दो बंगले ‘मामा के घर’ में विलीन हो गए। नए साल के दूसरे दिन शिवराज अपने निर्वाचन क्षेत्र बुधनी में थे। वहां एक सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने दोहराया कि वो मप्र में ही जीएंगे और मरेंगे। उन्होंने दार्शनिक भाव से यह भी कहा कि हर चीज के पीछे कोई बड़ा उद्देश्य जरूर होता है। बिना कारण कोई बात नहीं होती। कभी किसी व्यक्ति का राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है, जो कि किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।‘ उनका इशारा साफ था। यही नहीं भोपाल में आयोजित एक रैली में शिवराज ने कहा कि इस धरती पर मैं आया ही इसलिए हूं कि ताकि लोगों के दुख दर्द दूर कर सकूं। मामला यहीं नहीं रूका। भोपाल में ब्रह्मकुमारीज सुख शांति भवन के वार्षिक उत्सव में पहुंचे शिवराजजी ने आध्यात्मिक अंदाज में कहा कि जीवन में जब हम दूसरों के लिए काम करते हैं, तो जिंदगी आनंद से भर जाती है। अब मुझे राजनीति से हटकर काम करने का मौका भी मिल रहा है। लेकिन यहां कई लोग ऐसे भी हैं जो रंग देखते हैं। मुख्यमंत्री हैं तो कहते हैं कि भाई साहब, आपके चरण तो कमल के समान हैं और पद से हटे तो होर्डिंग से (हमारे) फोटो ऐसे गायब होते हैं, जैसे गधे के सिर से सींग।” इस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वियज सिंह ने चुटकी ली कि
शिवराज जी आपने सही फरमाया, इसलिए मैंने मुख्यमंत्री के रूप में कभी भी सरकारी विज्ञापन में कहीं भी अपना चित्र लगाने के लिए नहीं कहा था।‘ खैर..। इसके बाद भोपाल में लोकसभा स्पीकर की मौजूदगी में नए विधायकों के ग्रुप फोटो में भी शिवराज नहीं दिखे। उधर मंत्रिमंडल में उन्हीं के सहयोगी रहे और फिर मंत्री बने विजय शाह ने नसीहत के भाव से कहा कि पद किसी की बपौती नहीं है। परिवर्तन जरूरी है। बहरहाल यह बोध कथा अभी खत्म नहीं हुई है। डर यह है कि है कि ‘रामायण’ के रूपक कहीं ‘महाभारत’के प्रसंगों में न बदल जाएं।

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