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9 साल के थे वीडी और कमलनाथ थे सांसद

(लेखक- राकेश अचल)

बदजुबानी पर कांग्रेस के

नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छीनने वाले देश में बदजुबानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। बदजुबानी करने वालों को पता है कि राहुल के साथ जो हुआ वो एक राजनीतिक अदावत का हिस्सा था इसलिए बदजुबानी करने में न कोई हिचक रहा है और न किसी को कोई डर है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को कमीशन नाथ कहने वाले मौज में हैं।

कमलनाथ से मैं कभी मिला नहीं। कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, लेकिन मैं कमल नाथ को तबसे जानता हूँ जब वे राजनीति में आये थे। एक पत्रकार के नाते हुयी मुलाकातों को मैं मिलना-मिलाना नहीं मानता। मैं मानता हूँ कि कमल नाथ आज के नेताओं की पीढ़ी में सबसे ज्यादा योग्य नेता हैं। वे किस दल में हैं इससे उनकी योग्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उन्हें कमीशन नाथ कहने वाले नेता उनके सामने बच्चे हैं। कमल नाथ की कमीशन नाथ कहने से कांग्रेसियों को कष्ट होता हो या न हो लेकिन मुझे ये अशोभनीय लगता है। राजनीति में इतना छिछलापन स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।

राजनीति में नैतिकता और मर्यादाओं का कोई स्थान नहीं है। राजनीति में अब कोई मर्यादा पुरषोत्तम बनना भी नहीं चाहता, फिर भी राजनीति को इसकी जरूरत है। कमलनाथ को कमीशन नाथ कहने वाले मप्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष की उम्र जब मात्र 9 साल की थी जब कमल नाथ संसद पहुंच चुके थे। वे सातवीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं और वीडी शर्मा 17वीं लोकसभा के सदस्य हैं। कमल नाथ और वीडी शर्मा की राजनीतिक आयु में पूरे 40 साल का अंतर है। यानि वे राजनीति में वीडी शर्मा के दादा नहीं तो, पिता तो हैं ही। ऐसे में उन्हें जुबान सम्हालकर बोलना चाहिए। लेकिन शाखा के संस्कार शायद इसकी इजाजत नहीं देते। हालांकि शाखामृग नाम के आगे श्री और पीछे जी लगाने के आदी होते हैं। उन्हें इसके लिए दीक्षित किया जाता है।

कमल नाथ और वीडी शर्मा में से मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कौन हो ये चुनाव हमें नहीं करना। ये फैसला राजनीतक दल और प्रदेश की जनता करती है। हम लेखक और पत्रकार केवल मीमांसा कर सकते हैं। कमल नाथ यदि वीडी शर्मा के बारे में कोई हल्की टिप्पणी करें तो वो भी उतनी ही असभ्य मानी जाएगी, जितनी कि वीडी शर्मा द्वारा कमलनाथ के लिए की गयी टिप्पणी है। दरअसल, कमलनाथ भाजपा की आँख की किरकिरी हैं। कमलनाथ ने ही एक नई ऊर्जा के साथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी की थी। 2018 में भाजपा के 15 साल के साम्राज्य को नेस्तनाबूद करने वाले कमलनाथ हर मामले में आज के मुख्यमंत्री से इक्कीस बैठते हैं। भाजपा को आशंका है कि कहीं 2023 में भी कमलनाथ के नेतृत्व में फिर भाजपा का तख्ता न पलट जाये।

कमलनाथ के राज में मान लीजिये कमीशनखोरी चरम पर रही भी हो, तो आपने 18 माह क्या किया? आप केवल आसमान के तारे गिनते रहे। आपरेशन लोटस में उलझे रहे। आपने आपरेशन लोटस से ही कमलनाथ की सरकार को अपदस्थ किया। चलिए अच्छा किया, लेकिन अब जब जनता की अदालत में जाने का मौक़ा आ रहा है तो जुबान को लगाम देना चाहिए। जुबान को लगाम की जरूरत हर राजनीतिक दल के नेताओं को है। कांग्रेसी भी यदि शिवराज को यमराज कहेंगे तो मैं निंदा करूंगा और कहूंगा कि वे भी बदजुबानी को अपना औजार न बनाएं।

कांग्रेस की बदजुबानी का हिसाब माननीय प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी जी के पास है। मोदी जी ने कर्नाटक की चुनावी रैलियों ने सार्वजनिक रूप से बताया था कि कांग्रेसियों ने उनके खिलाफ 92 बार गालियां दी हैं। राजनीति में बदजुबानी का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। दुर्भाग्य ये है कि राजनीति में सुभाषित बोलना कोई या तो जनता नहीं या फिर उसे इसकी तमीज नहीं है। खिसयानी बिल्ली खंभ्भा नौच सकती है लेकिन गालियां नहीं दे सकती। ऐसे में नेताओं को भी अपनी हदों में रहना चाहिये। मुझे कभी-कभी पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में नेताओं की जरूरत को पूरा करने के लिए गालियों का कोई नया शब्दकोश ही न आ जाए।

बदजुबानी कमल नाथ करें या वीडी शर्मा कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, बदजुबानी से राजनीति समृद्ध नहीं होती। असंसदीय और अशोभनीय शब्दावली राजनीति को दूषित करती है और करती जाएगी। राजनीति यदि मुद्दों पर होगी तो परिणाम कर्नाटक जैसे ही आएंगे। जनता बदजुबानी से आजिज आ चुकी है। जनता मुद्दों पर बात होते देखना चाहती है। अब आप चुनाव प्रबंधन से जीतते हैं, गाली-गलौच से नहीं। पहले अमित शाह और अब डीके शिवकुमार ये साबित कर चुके हैं। अब मध्यप्रदेश में भी यही सब साबित करने का समय आ चुका है। गालियों पर केंद्रित राजनीति के बजाय मुद्दों पर केंद्रित राजनीति का समय है।

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