सपा-कांग्रेस के गठबंधन को किसे होगा फायदा
लखनऊ। कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने व उसके कोटे की सीटें बढ़ाने के पीछे दो अहम फैक्टर माने जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रालोद के जाने के बाद सपा के पास उसके कोटे की 7 सीटें खाली थीं। कांग्रेस को पहले ही 11 सीट का वादा किया जा चुका था। इसमें रायबरेली-अमेठी शामिल नहीं थी। इनको मिला लें तो 13 सीटों पर सपा पहले ही तैयार थी। रालोद के जाने के बाद उदारता दिखाना आसान हो गया। अंदरखाने यह भी फीडबैक था कि अल्पसंख्यक वोटरों में कांग्रेस को लेकर रुझान बेहतर हुआ है। प्रदेश की 25 से अधिक लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोटरों की भूमिका प्रभावी है। ऐसे में कांग्रेस के अलग लड़ने से इन वोटरों के बंटवारे का भी खतरा था, जिसका सीधा नुकसान सपा को हो सकता था। हाल में राज्यसभा के टिकट सहित अन्य मसलों को लेकर भी सपा में मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर सवाल उठे थे। इसलिए भी सपा ने वोटरों में एका का संदेश देने का दांव खेला है। हालांकि, सीटों के बंटवारे में उसके कोर वोटरों को किसी और के पाले में खिसकने का खतरा न हो, इस पर सपा ने खास ध्यान दिया है। कांग्रेस को मिली सीटों में अमरोहा और सहारनपुर ही ऐसी है, जहां अल्पसंख्यक वोटर चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं।